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Kolkata घटना पर Asha Devi ने पूछे सख्त सवाल


कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में महिला रेजिडेंट डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या को लेकर देशभर में पिछले एक हफ्ते से ज्यादा से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। महिला रेजिडेंट डॉक्टर, जिसकी पहचान मौमिता देबनाथ के रूप में हुई है, के साथ हुए निर्मम कृत्य की घटना को ‘निर्भया 2’ का नाम भी दिया जा रहा है। इन सब के बीच अब दिल्ली रेप केस की पीड़िता ‘निर्भया’ की मां आशा देवी ने कोलकाता मामले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि उन्हें नहीं लगता है कि महिलाओं की सुरक्षा और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए कुछ किया गया है।आशा देवी ने कहा, ‘उस बेटी के साथ जो हुआ, अगर एक से अधिक लोग हैं, तो सभी आरोपियों को तुरंत पकड़ा जाना चाहिए। उन्हें तुरंत सजा मिलनी चाहिए। अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि लड़की के साथ किसी एक व्यक्ति ने मारपीट की या सामूहिक बलात्कार किया। एक डॉक्टर के साथ इतना घिनौना अपराध तब हुआ जब वह अस्पताल में ड्यूटी पर थी। अगर डॉक्टर अस्पताल के अंदर सुरक्षित नहीं हैं तो हम आम महिलाओं और लड़कियों के बारे में क्या सोच सकते हैं।’निर्भया की मां ने आगे कहा, ‘सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वहां जो स्थिति बनी है। सरकारें उस मामले पर काम करने और महिला सुरक्षा तथा कानून की कमियों पर काम करने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं और विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय, पुलिस सब कुछ सीएम (पश्चिम बंगाल) के अधीन आता है, समझ में नहीं आता कि वह किसके खिलाफ विरोध कर रही हैं और किससे फांसी की सजा मांग रही हैं। कानून उनके हाथ में है, सरकार कम से कम मामले को निचली अदालत में ठीक से भेज सकती है। जब भी ऐसी घटना होती है तो निर्भया का नाम आता है लेकिन निर्भया कांड से हमने क्या सीखा, व्यवस्था में क्या बदलाव आया है? हम अभी भी 2012 में हैं।’आशा देवी ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि महिलाओं की सुरक्षा और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए कुछ किया गया है, कानून ज़रूर बनाए गए लेकिन कोई काम नहीं हुआ। निर्भया के दोषियों को 2020 में फांसी दी गई लेकिन उससे पहले और बाद में इतनी सारी घटनाएँ हुईं। किसको न्याय मिला? घटनाएँ रोज़ हो रही हैं। अगर आप दोषियों को सज़ा नहीं देंगे और उन्हें जेल में नहीं डालेंगे और उन्हें खाना नहीं देंगे और उनकी ज़रूरतों का ख्याल नहीं रखेंगे, तो महिलाएं कैसे सुरक्षित रहेंगी? जब तक दोषियों को सज़ा नहीं मिलेगी, जब तक फास्ट ट्रैक कोर्ट में काम नहीं होगा और जब तक बनाए गए कानूनों पर काम नहीं होगा, तब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी और महिलाएँ सुरक्षित नहीं होंगी।’

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