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पालकी में सवार होकर आ रही हैं माता रानी, अभी से नोट कर लें नवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त


पितृ पक्ष के समापन के बाद ही शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो जाएगी। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि का पहला दिन होता है. उस दिन सुबह ही कलश स्थापना की जाती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा का आगमन पालकी पर होगा। शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर गुरुवार से आरंभ होंगी और इस पर्व का समापन 12 अक्टूबर दिन शनिवार को होगा।
ये है शुभ मुहूर्त
इस साल अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 3 अक्टूबर को प्रातः 12.18 से 4 अक्टूबर प्रातरू 02.58 तक रहेगी। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के लिए सुबह 06.15 से सुबह 07.22 तक शुभ मुहूर्त बन रहा है। नवरात्रि में कलश स्थापना (घट स्थापना) का विशेष महत्व है। यह एक शुभ और पवित्र कर्मकांड है, जो नवरात्रि के पहले दिन किया जाता है। इसे मां दुर्गा का आह्वान और उनके स्वागत का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना के साथ नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी की पूजा की जाती है।
कलश स्थापना का महत्व
कलश को मां दुर्गा का प्रतीक माना जाता है। इसे स्थापित करने से मां दुर्गा का घर में आगमन होता है, और वे अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। यह घर में शांति, समृद्धि, और सकारात्मक ऊर्जा लाने का एक प्रतीक है। कलश की स्थापना का अर्थ होता है हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त करना। इसे नवरात्रि में शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए किया जाता है। यह शक्ति, सुख, और समृद्धि के आगमन का प्रतीक माना जाता है।
पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक
कलश में रखे जल को पवित्र माना जाता है, जो पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुद्धता फैलाता है। कलश में आम के पत्ते, नारियल, और सुपारी रखी जाती हैं, जो प्रकृति और दिव्यता का प्रतीक हैं। कलश की स्थापना के साथ माँ दुर्गा को नवरात्रि के नौ दिनों तक आमंत्रित किया जाता है। इसमें माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों को विभिन्न प्रकार के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। कलश में दिव्यता और आध्यात्मिक शक्ति का निवास भी माना जाता है। यह जल जीवन, उन्नति, और ज्ञान का प्रतीक है। जब कलश की पूजा की जाती है, तो वह आध्यात्मिक उन्नति और आत्मशुद्धि का मार्ग खोलता है।
कलश स्थापना की प्रक्रिया
कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है, जिसे प्रतिपदा तिथि कहा जाता है। शुभ मुहूर्त और सही समय का चयन किया जाता है, ताकि कलश की स्थापना विधिवत हो सके। सबसे पहले एक पवित्र स्थान का चयन किया जाता है, जहाँ कलश स्थापित किया जाएगा। उस स्थान पर थोड़ा सा मिट्टी रखा जाता है और उसमें सप्तधान्य बोए जाते हैं। यह जगह धरती का प्रतीक है। फिर तांबे या मिट्टी का कलश लेकर उसमें जल भरा जाता है, और थोड़ी मात्रा में गंगा जल भी डाला जाता है। इसके बाद कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे जाते हैं और उसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है, जो लाल कपड़े में लिपटा होता है। इसे मौली (कलावा) से बांधा जाता है।अंत में कलश की पूजा की जाती है और देवी मां का आवाहन किया जाता है।
अखण्ड ज्योति
कलश स्थापना के साथ अखण्ड ज्योति भी जलाई जाती है, जो नवरात्रि के नौ दिनों तक लगातार जलती रहती है। यह ज्योति शक्ति और भक्ति का प्रतीक होती है और इसे न बुझने देने का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कलश स्थापना के लाभ
– कलश स्थापना से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
– ऐसा माना जाता है कि कलश की विधिवत पूजा करने से माँ दुर्गा भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं और घर-परिवार की हर बाधा को दूर करती हैं।
– कलश स्थापना से घर में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। यह घर के सभी सदस्यों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करता है।

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