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आखिर जस्टिस बेला त्रिवेदी को क्यों नहीं दिया गया फेयरवेल? भड़क गए CJI


सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के लिए सामान्य विदाई समारोह आयोजित न करने के सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के फैसले की निंदा की। जस्टिस गवई ने कहा कि जज कई तरह के होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो राहत देते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो राहत नहीं देते। वे आखिरकार इंसान ही होते हैं। हर किसी के अलग-अलग विचार होते हैं, लेकिन असोसिएशन के अपनाए गए रुख की मैं खुले तौर पर निंदा करता हूं, क्योंकि मैं साफ और सीधी बात कहने में विश्वास करता हूं। असोसिएशन को ऐसा रुख नहीं अपनाना चाहिए था। सीजेआई ने इस बात की भी सराहना की कि बार के प्रस्ताव के बावजूद उसके अध्यक्ष कपिल सिब्बल और अन्य पदाधिकारी वहां मौजूद रहे। जस्टिस बेला सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की 11वीं महिला जस्टिस हैं। वह 9 जून को रिटायर हो रही हैं, लेकिन उन्होंने कुछ वजहों ने 16 मई को अपना आखिरी कार्यदिवस चुना। 2024 के ऐतिहासिक फैसले में 6:1 बहुमत ने फैसला सुनाया कि राज्य अनुसूचित जातियों (एससी) के भीतर उपवर्गीकरण बना सकते हैं ताकि अधिक वंचित समूहों को आरक्षण आवंटित किया जा सके। न्यायमूर्ति त्रिवेदी एकमात्र असहमत थे, जिन्होंने कहा कि राज्यों द्वारा इस तरह का उपवर्गीकरण असंवैधानिक था। अपने अंतिम कार्य दिवस से एक दिन पहले सुनाए गए फैसले में न्यायमूर्ति त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) मामलों के लिए विशेष अदालतों की संख्या की अपर्याप्तता को चिह्नित किया। अदालत ने कहा कि इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि भारत संघ और राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगी कि POCSO अदालतें बनाई जाएं और मामलों का समय पर फैसला किया जाए।
जिला जज से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने जुलाई 1995 में गुजरात की एक निचली अदालत के जज के रूप में शुरुआत की। उनके पिता भी इसी कोर्ट में तब जज थे। वह 7 जजों की उस संविधान पीठ में भी थीं जिसने अगस्त 2024 में 6:1 के बहुमत से माना कि राज्यों को SC कैटिगरी के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है। जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताई थी।

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