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2019 के बाद गठबंधनों की बदलती रही स्थिति


लोकसभा चुनाव पूरी तरीके से दहलीज पर है। सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं। अब तक की जो स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है उसमें ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच ही रहने वाला है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर किस गठबंधन की ताकत कितनी है? 2019 की तुलना में इस बार कौन से दल किस गठबंधन में हैं? 2024 के चुनाव पर इसका क्या असर पड़ने वाला है?इसमें कोई दो राय नहीं है कि तमाम सर्वे इस बात का दावा कर रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। एनडीए में भाजपा के बड़े सहयोगियों की बात करें तो उसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, अजित पवार गुट की एनसीपी और जयंत चौधरी की आरएलडी शामिल है। उत्तर प्रदेश में संजय निषाद की निषाद पार्टी, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा, बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, रामविलास पासवान की पार्टी के दोनों गुट और जीतन राम मांझी की हम एनडीए के साथ है। दक्षिण भारत के राज्यों में भी भाजपा ने छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की है जो इसकी ताकत को बढ़ाती है।
इंडिया गठबंधन की ताकत
कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन की ताकत की बात करें तो कहीं ना कहीं इसमें कई क्षेत्रीय दल शामिल है जो अपने-अपने राज्य में बड़ा जनाधार रखते हैं। लेफ्ट के तमाम दलों के अलावा इंडिया गठबंधन को उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी, बिहार में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, दक्षिण में एमके स्टालिन के डीएमके, महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे के शिवसेना, केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस, कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा का साथ मिल रहा है। ऐसे में यह गठबंधन भी कागजों पर मजबूत स्थिति में दिख रहा है।
2024 की स्थिति
जो 2019 में भाजपा के साथ थे वे अभी इंडिया में नहीं है तो उनमें उद्धव ठाकरे की अविभाजित शिवसेना, हनुमान बेनीवाल की पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, तमिलनाडु की एआईएडीएमके फिलहाल भाजपा के साथ शामिल नहीं है। हालांकि भाजपा ने इसके विकल्प भी तैयार रखे हैं। उद्धव ठाकरे से अलग होकर बने शिवसेना फिलहाल भाजपा के साथ है। वहीं, दक्षिण भारत में एआईएडीएमके की जगह पार्टी ने कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर रखा है। नीतीश कुमार की जदयू 2019 में भी एनडीए के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ी थी। हालांकि बाद में नीतीश कुमार एनडीए से बाहर हो गए वह महागठबंधन में चले गए और इंडिया गठबंध की नींव रखने वाले नेताओं में से एक रहे। हालांकि, एक बार फिर से नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए हैं। ऐसे में एनडीए गठबंधन मजबूत हुआ है वहीं, इंडिया को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना 2019 में कांग्रेस के साथ नहीं थी। लेकिन इस बार खड़ी दिखाई दे रही है। हालांकि इंडिया गठबंधन में द्वंद्व की स्थिति भी है। आम आदमी पार्टी जहां कांग्रेस के साथ दिल्ली में गठबंधन कर रही है तो वहीं पंजाब में दोनों दलों ने एक दूसरे से किनारा किया हुआ है। ममता बनर्जी खुद को इंडिया गठबंधन का हिस्सा मानती हैं लेकिन बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों के खिलाफ उनका आक्रामक रवैया जारी है और कहीं ना कहीं बंगाल में कोई गठबंधन अब तक नहीं हो पाया है। कांग्रेस के लिए असहज करने वाली स्थित वामदालों से गठबंधन है क्योंकि बंगाल और त्रिपुरा में दोनों साथ है जबकि केरल में दोनों एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हुए दिखाई दे जाते हैं।

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