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पानी के बिल पर ग्रीन सेस लगाने की तैयारी कर रही सरकार


कर्नाटक के वन एवं पर्यावरण मंत्री ईश्वर बी खांडरे ने अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजे पत्र में निर्देश दिया है कि वे सात दिनों के भीतर एक प्रस्ताव पेश करें, जिससे कस्बों और शहरों में पानी के बिलों पर दो या तीन रुपये का ग्रीन सेस लगाया जा सके।कर्नाटक की सरकार पानी के बिलों पर ग्रीन सेस (हरित उपकर) लगाने की तैयारी कर रही है। दरअसल कर्नाटक सरकार के वन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण मंत्री ईश्वर बी खांडरे ने राज्य के वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को प्रस्ताव पेश करने के निर्देश दिए हैं। सरकार का कहना है कि सेस के पैसे से पश्चिमी घाटों का विकास किया जाएगा, जो पर्यावरण के लिहाज से बेहद अहम हैं।
क्यों अहम हैं पश्चिमी घाट
कर्नाटक के वन एवं पर्यावरण मंत्री ईश्वर बी खांडरे ने अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजे पत्र में निर्देश दिया है कि वे सात दिनों के भीतर एक प्रस्ताव पेश करें, जिससे कस्बों और शहरों में पानी के बिलों पर दो या तीन रुपये का ग्रीन सेस लगाया जा सके। ग्रीन सेस से मिले पैसों से एक कोष बनाया जाएगा, जिससे पश्चिमी घाटों का संरक्षण होगा। गौरतलब है कि पश्चिमी घाट न केवल जैव विविधता के लिए अहम स्थल हैं, साथ ही ये तुंगा, भद्रा, कावेरी, काबिनी, हेमावती, कृष्णा, मालाप्रभा, घाटप्रभा और अन्य नदियों का स्त्रोत भी हैं।
ग्रीन सेस के पैसों से बनाया जाएगा फंड
वन एवं पर्यावरण मंत्री ईश्वर बी खांडरे ने बताया कि अधिकारियों से मिले प्रस्ताव को मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री के पास भेजा जाएगा। खांडरे ने अपने पत्र में लिखा कि पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी तंत्र और कर्नाटक राज्य के लिए जीवन रेखा है। राज्य के शहरों और कस्बों को जो पानी की आपूर्ति की जाती है, वह पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियों के पानी से ही की जाती है। ग्रीन सेस के पैसे से एक फंड बनाया जाएगा और उस फंड के पैसों से पर्यावरण विभाग किसानों द्वारा बेची जा रही जमीन की खरीद करेगा और मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए वन सीमाओं पर अवरोध भी लगाने की योजना है। इस फंड के पैसे को कहीं और खर्च नहीं किया जाएगा।मंत्री ने कहा कि ‘लोग हमेशा पानी के उपचार तथा परिवहन के लिए भुगतान करते हैं। कोई भी पानी के स्रोत के बारे में नहीं सोचता। यह उपकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने तथा उनके द्वारा उपभोग किए जा रहे पानी के महत्व को समझने में मदद करेगा। पश्चिमी घाट क्षेत्र खतरे में हैं तथा वन क्षेत्रों को संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।’

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