बीती रात भारत के वायु रक्षा प्रणाली ने जो दुश्मन के सभी प्रयासों को विफल कर जो कमाल दिखाया है उसकी आज हर भारतीय सराहना कर रहा है और उसे यह विश्वास हो चला है कि तकनीक के मामले में हमारे रक्षा बल अब बहुत आगे निकल चुके हैं। देखा जाये तो आधुनिक युद्ध में आकाश पर नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए हवाई रक्षा प्रणालियाँ किसी भी देश की सुरक्षा अवसंरचना में एक महत्वपूर्ण कड़ी हो गयी हैं। हम आपको बता दें कि एक सक्षम और क्रियाशील हवाई रक्षा प्रणाली दुश्मन के हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करती है। जैसा कि बुधवार-गुरुवार की रात देखने को मिला जब पाकिस्तान की ओर से किये गये हमलों के सभी प्रयासों को विफल कर दिया गया। हम आपको बता दें कि हवाई रक्षा प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य आसमान से आने वाले खतरों को निष्क्रिय करना होता है— चाहे वह दुश्मन के लड़ाकू विमान हों, मानव रहित ड्रोन हों, या मिसाइलें। यह एक जटिल प्रणाली के माध्यम से किया जाता है, जिसमें रडार, नियंत्रण केंद्र, रक्षात्मक लड़ाकू विमान और ज़मीन आधारित मिसाइलें, तोपखाना तथा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली शामिल होती हैं। हम आपको बता दें कि हवाई रक्षा प्रणाली की तीन कार्यप्रणालियां हैं जोकि आपस में जुड़ी हुई हैं। हवाई रक्षा प्रणाली का सबसे पहला काम चुनौती का पता लगाना होता है। किसी भी हवाई रक्षा प्रणाली की सफलता की कुंजी यह है कि वह खतरे को समय पर पहचान सके। यह सामान्यतः रडार के माध्यम से किया जाता है, हालांकि कुछ मामलों में उपग्रहों का भी उपयोग होता है। यह तब होता है जब कोई दुश्मन अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) लॉन्च करता है। ऐसे में रडार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो तरंगें भेजता है, जो किसी वस्तु से टकराकर लौटती हैं। रिसीवर इन लौटती तरंगों से दूरी, गति और वस्तु के प्रकार की जानकारी प्राप्त करता है। हवाई रक्षा प्रणाली का दूसरा काम नजर रखना होता है। हम आपको बता दें कि केवल खतरे की पहचान करना काफी नहीं होता; उस पर लगातार और सटीक नज़र रखना भी ज़रूरी होता है। यह कार्य रडार, इन्फ्रारेड कैमरे और लेज़र रेंजफाइंडर जैसी तकनीकों के मिश्रण से किया जाता है। एक हवाई रक्षा प्रणाली अक्सर एक साथ कई तेज़ और जटिल खतरों को पहचानने और ट्रैक करने का कार्य करती है, जिनमें कभी-कभी अपने ही विमान भी हो सकते हैं। हवाई रक्षा प्रणाली का तीसरा काम प्रतिरोध करना होता है। हम आपको बता दें कि एक बार खतरे की पहचान और ट्रैकिंग हो जाने के बाद, उसे निष्क्रिय करना ज़रूरी होता है। इस संबंध में खतरे की प्रकृति, उसकी दूरी, प्रकार, गति आदि तय करती है कि उसका मुकाबला कैसे किया जाए। इन सभी कार्यों को मिलाकर एक प्रभावी “कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन (C3)” प्रणाली की आवश्यकता होती है। अब सवाल उठता है कि हवाई रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कैसे किया जाता है। दरअसल विभिन्न देश कई प्रकार के हथियारों का उपयोग करके हवाई खतरों को निष्क्रिय करते हैं। इसके लिए लड़ाकू विमान का उपयोग भी किया जाता है। इंटरसेप्टर लड़ाकू विमान दुश्मन के बमवर्षक विमानों को रोकने के लिए तेज़ी से उड़ान भरते हैं और उन्हें मार गिराते हैं। हम आपको बता दें कि भारत के पास मिग-21 बाइसन, मिग-29, सुखोई सु-30MKI, तेजस और राफेल जैसे विमान हैं। इसके अलावा सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAMs) भी उपयोग में लाई जाती हैं। आज SAMs अधिकांश हवाई रक्षा प्रणालियों की रीढ़ हैं। ये ज़मीन या जहाज़ों से लॉन्च की जाती हैं और रडार, इन्फ्रारेड या लेज़र मार्गदर्शन से नियंत्रित होती हैं। इनके भी तीन प्रमुख वर्ग हैं। जैसे भारी और दीर्घ दूरी वाली प्रणालियाँ (जैसे रूस निर्मित S-400) है। इसके अलावा मध्यम दूरी की मोबाइल प्रणालियाँ (जैसे आकाश मिसाइल) है। इसके अलावा छोटे रेंज की मैनपोर्टेबल प्रणालियाँ (MANPADS) हैं। हम आपको यह भी बता दें कि वायु रक्षा तोपखाना की भूमिका अब कम हो गई है, फिर भी ये अंतिम रक्षा के रूप में और ड्रोन जैसी कम ऊँचाई पर उड़ने वाली वस्तुओं के लिए कारगर होती हैं। ये तेज़ गति से गोले दागते हैं जो हवा में फटकर शरपनल बिखेरते हैं। हम आपको यह भी बता दें कि आज कई उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर प्रणालियाँ प्रचलन में हैं। ये ज़मीन और हवा दोनों से संचालित की जा सकती हैं।
