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महंगाई और बेरोजगारी को फोकस करें मोदी सरकार


प्रेम शर्मा
मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है। पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार द्वारा सबसे ज्यादा उपेक्षा महंगाई और बेरोजगारी की गई। जिसका परिणाम यह रहा कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नही मिला। यह अलग बॉत है कि भाजपा इसके लिए हिन्दु समुदाय को कोस रही हो। लेकिन इसके ठीक इतर वह इस बॉत से अनजान नही है कि देश की आधी आबादी को वह स्वंय निःशुल्क राशन उपलब्ध कराकर यह सिद्ध कर रही है कि देश की आधी आबादी दो जून की रोटी के लिए मोहताज है, ऐसा में उसका विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति, विकास के नए आयाम गढ़ने और तरह तरह के दावे निःशुल्क अन्न वितरण के सामने बौने लगते है। लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली धांधली, पर्चा लीक होने तथा सरकारी सेवाओं में आउटसोर्सिंग के मायााजल ने युवा वर्ग को भाजपा से दूर करना शुरू कर दिया है। ठेका प्रणाली वाली नौकरियों से सरकारी संस्थानोें की विश्वसनीयता कम हो रही है। भ्रष्टचार बढ़ रहा है। चोरी की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। गैर जिम्मेदारी बढ़ रही है। सरकार अगर इससे अंजान बनी रहेगी तो इसके बहुत गम्भीर परिणाम सामने आएगंे। महंगाई्र चरम सीमा पर है। खुदरा बाजार सरकारों के नियंत्रण से बाहर हो चुका है। ऐसे में अगर गठबंधन का नेतृत्व कर रही भाजपा ने महंगाई और बेरेाजगारी को तीसरे कार्यकाल में फोकस नही किया तो अगले कुछ समय में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। मतदाताओं ने आज फिर केंद्र में गठबंधन सरकार को चुना है। ऐसा लगता है कि मतदाताओं द्वारा मनमाने ढंग से सरकार चलाने से प्रभावित नहीं हुए। पार्टी के शीर्ष नेता लोगों की समस्याओं जैसे डेढ़ साल से अधिक समय तक चले किसान आंदोलनॉ महिला पहलवानों द्वारा महीनों तक विरोध प्रदर्शनॉ बेरोजगारी और महंगाई के प्रति पूरी तरह से असंवदेनशील रहे। पार्टी नेतृत्व का अहंकार सभी को दिखाई दे रहा हैॉ जिसमें उनके अपने कार्यकर्ता भी शामिल हैं। मौजूदा एनड़ीए सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन की प्रथाओं का आदी नहीं है। वे हमेशा एकतरफा नेतृत्व में विश्वास करते रहे हैं। जिसमें सहमति और संवेदनशील राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए सत्तारूढ़ दल के लिए सामूहिक नेतृत्व प्रदान करना बड़ी चुनौती होगी। जो गठबंधन सरकार के लिए एक शर्त है। यद्यपि गठबंधन सरकारें लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में अधिक प्रभावी हो सकती हैंॉ लेकिन चुनौतियों और कठिनाइयों को एक ऐसे नेता द्वारा दूर किया जा सकता है। गठबंधन का एक धर्म होता है। इस धर्म को जब तक निभाया जाता है तब तक तो गठबंधन की सरकार ठीक चलती रहती है। जैसे ही गठबंधन के दल इसका पालन करना बंद कर देते हैंॉ समस्याएं पैदा होना शुरू हो जाती हैं। गठबंधन की सरकारों में बड़े दल को बड़े भाई जैसी भूमिका निभानी पड़घ्ती है और हर पल छोटे दलों के सम्मान का ख्याल रखना पड़घ्ता है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार इसलिए जन कल्याण के बड़े फैसले ले सकी थी क्योंकि उसने हमेशा गठबंधन धर्म का पालन किया। पुराने उदाहरण हमारे सामने हैं जब-जब भी दलों ने गठबंधन सरकार को छोड़घ है या दलों ने समर्थन वापस लिया है। उन्होंने यही आरोप लगाया है या पीड़घ जाहिर की है कि गठबंधन धर्म नहीं निभाया गया। पार्टी के नेताओं और मंत्रियों की पिछले दो कार्यकालों में बेअंदाजी भी भाजपा को महंगी पड़ी है उस पर भी नेतृत्व को अंकुश लगाना होगा। इस बार गठबंधन सरकार बनने से राजनीति के जानकार यह भी कहने लगे हैं कि अब गठबंधन का दौर शुरू हो गया है और एक दल को बहुमत वाली सरकारों के दिन फिर से लद गए हैं। इस बार यह भी अच्छा रहा है कि एनडीए और इंड़िया दोनों गठबंधन के सांसदों की लोक सभा में संख्या अच्छी है। पिछली दो सरकारों का अनुभव अच्छा नहीं रहा था। विपक्ष की संख्या कम होने की वजह से सरकार ने विपक्ष को कभी विश्वास में नहीं लिया। कृषि कानून जैसे कई विधेयक बिना चर्चा के पारित कराए गए। किसानों ने इसे अस्वीकार कर दिया और लगभग एक साल तक दिल्ली के बॉर्ड़र पर कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन किया। मजबूर होकर सरकार को इसे वापस लेना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन होने के बाद यह आवश्यक है कि जिन कारणों से भाजपा को बहुमत से कम सीटें हासिल हुईं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए और भविष्य की नीतियां तय की जाएं। प्रधानमंत्री मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में तेलुगु देसम पार्टी और जनता दल-यू के सहयोग से गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। फिलहाल सरकार के स्थायित्व को लेकर कोई खतरा नहीं है और आशा है कि यह सरकार पहले की तरह मजबूती के साथ काम करती रहेगी और सहयोगी दल दलगत हितों अथवा अपने-अपने राज्य के हितों के बजाय राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देंगे।दस साल पहले के मुकाबले आज देश विकास के कहीं ज्यादा ऊंचे मुकाम पर खड़ा है। 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से हम पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। डीजीपी के आकार के हिसाब से हमने पिछले साल ब्रिटेन को पीछे छोड़ा और 2026 तक जापान तो 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़ने की उम्मीद कर रहे हैं। इन लक्ष्यों की ओर तेजी से कदम बढ़ाना नई सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इस राह पर दो बड़ी चुनौतियां में बेरोजगारी और असमानता शामिल है। इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट के मुताबिक देश में 80 प्रतिाश्त बेरोजगार युवा हैं। जहां तक असमानता की बात है तो उसे अक्सर तेज विकास के आगे ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती, लेकिन याद रखने की बात है कि तेज विकास को अगर टिकाऊ बनाना हो तो असमानता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मौजूदा जनादेश की सबसे उपयुक्त व्याख्या यही हो सकती है कि कथित तौर पर बांटने वाले राजनीतिक मुद्दों से दूरी बनाए रखते हुए सरकार विकास के अजेंडे पर पूरा ध्यान केंद्रित करे।देश के प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा रहेगी कि वे देशविरोधी विमर्श को भी नष्ट करेंगे और देश तोड़ने वाली शक्तियों को उचित दंड देंगे। दंड विधान न होने से अराजकता का विस्तार होता है, जैसा हमने शाहीन बाग और किसान आंदोलन के दौरान देखा था। देश अब उन घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं चाहेगा। देशवासी यह चाहते हैं कि सरकार हर उस विमर्श का समूल नाश करे, जो लगातार देश को कमजोर कर रहा है. क्योंकि अराजकता से देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है और इसके कारण करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं।
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