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राष्ट्र की अस्मिता से जुड़े विषयों पर बयानबाजी असहनीय


इन दिनों भारत की अस्मिता से जुड़े विषयों पर की जा रही बयानबाजी करोड़ों हिंदुस्तानियों के मन को दुखी कर रही है। इन बयानबाजियों पर संयम और नियंत्रण की जरूरत प्रतीत हो रही है। अगस्त का महीना भारत की अंग्रेज राज से मुक्ति का महीना है। इस माह की 15 तारीख को राष्ट्र अंग्रेजी हुकूमत की लंबी गुलामी से आजाद हुआ था। इस तारीख का बड़ा महत्व है। इसी दिन सम्पूर्ण भारत आजादी की वर्षगांठ मनाता है। देश को मिली आजादी लंबे संघर्ष और बलिदान का प्रतिफल है। ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे से आजाद हुए देश को असली आजादी मिली गणतंत्र दिवस पर जब देश के महान नेताओं ने कड़े परिश्रम से भारत के संविधान को आकार दिया। 15 अगस्त आजादी की वर्षगांठ बनाने का दिन है तो 26 जनवरी संविधान के लागू होने का दिन। गणतंत्र दिवस अपने संविधान से शासित होने का दिन है। संविधान लागू किया याने मुल्क अब अपने संविधान से शासित होने लगा। जैसा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख है, हम भारत के लोगो ने संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया है। यह संविधान ही है जो देश के नागरिकों को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। संविधान द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता का उपयोग करना हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार तो है, किंतु इसके प्रयोग में सावधानी और संयम की आवश्यकता भी है। हाल ही में संसद के शपथ समारोह में किसी अन्य राष्ट्र की जय के नारा लगाया, बांग्लादेश में हुए तख्तापलट से जोड़कर भारत की तुलना करने की बात हो या पेरिस ओलंपिक में महिला रेसलर विनेश फोगाट के 100 ग्राम अधिक वजन होने के विषय पर हुई बयानबाजी हो। ऐसी बयानबाजी से करोड़ों भारतीयों को असहनीय पीड़ा पहुंचती है। इन पीड़ादायक और असहनीय बयानों में भारत की संसद में आयोजित शपथ समारोह में शपथ लेने के दौरान हैदराबाद के सांसद सदस्य असुद्दीन ओवैसी ने जय भीम, जय मीम जय तेलंगाना और उसके बाद जय फिलिस्तीन का नारा लगाया। सांसद ओवेशी ने जय फिलिस्तीन का नारा भारत की सांसद में क्यों लगाया ? भारत की सरकार ने उन्हें तत्काल सांसद पद से हटा क्यों नही दिया। भारत की सांसद में किसी दूसरे देश की जय के नारे लगाने के पीछे ओवेशी का मकसद क्या था? इस प्रकार के नारे लगाने के बाद भारत की सरकार ने तत्काल प्रभावी कार्यवाही करनी चाहिए थी। शपथ ग्रहण समारोह में जय फिलिस्तीन का नारा सुन मुझ जैसे करोड़ों हिंदुस्तानी अचंभित है। भारत के संविधान ने असुद्दीन ओवैसी के दल को राजनैतिक दल के रूप में मान्यता दी है। इसी संविधान की बदौलत ही उन्हें बोलने की आजादी भी मिली है। किंतु उनके भारत की लोकसभा में जय फिलिस्तीन के नारे के बाद देश को प्रेम करने वाले करोड़ों भारतीय दुखी है, खिन्न है, नाराज और आक्रोशित है। सरकार को इस सांसद सदस्य के खिलाफ सख्त कार्यवाही करना चाहिए थी, किंतु आश्चर्य की अब तक सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की है। ऐसा ही अनर्गल, बेतुका और शर्मशार कर देने वाले बयान कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद और मध्यप्रदेश के कांग्रेस के नेता राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के द्वारा दिया गया। इन दोनों कांग्रेस नेताओं के बयानों में मामूली सा अंतर है। सलमान खुर्शीद के अनुसार ’बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह यहां भी हो सकता है। हमारे देश में इसका प्रसार चीजों को तरीके से फैलने से रोकता है, जिस तरह बांग्लादेश में फैलाया गया है। उन्होंने कहा काश्मीर में सब कुछ सामान्य लग सकता है, हम जीत का जश्न मना रहे होगे, हालाकि निश्चित रूप से वह जीत या 2024 की सफलता शायद मामूली थी।’ सलमान खुर्शीद अपने इन बयानों में आशंका जताते हुए दिख रहे है। खासकर काश्मीर के संदर्भ में जहां भारत सरकार द्वारा धारा 370 हटाने की कार्यवाही की गई थी। सलमान के बयान के बाद मैने व्यक्तिगत रूप से उसे बार–बार पढ़ा और उसे समझने का प्रयास किया तो पाया की भारत सरकार के विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद का यह बयान पूरी तरह राजनैतिक नजर आया। आमतौर पर भारत की राजनीति में आरोप–प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहता रहता है। किंतु यह तब असहनीय हो जाता है जब मामला भारत देश की मान, मर्यादा और गौरव से जुड़ा हुआ हो। मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेता सज्जन वर्मा ने इसी बात को भ्रष्टाचार से जोड़कर कहा श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद भारत का नंबर आएगा। उन्होंने देश के कुछ नेताओं का नाम लेते हुए इन बयानों का उल्लेख किया। इन दोनो नेताओं का बयान बांग्लादेश के वर्तमान हालातों से देश की तुलना करने को लेकर है। जहां आक्रोशित भीड़ ने प्रधानमंत्र शेख़ हसीना के प्रधानमंत्री निवास में घुसकर लूटपाट मचा दी। शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्हें देश छोड़कर भारत की शरण भी लेना पड़ी। भारत के संदर्भ में ऐसी तुलनात्मक टिप्पणी अनर्गल, बैतुकी ही मानी जाएगी। अब यहां विचारणीय प्रश्न यह है की राजनीति अंधी प्रतिस्पर्धा में राष्ट्र से जुड़ी टिप्पणी करना कहा तक उचित है। सलमान और सज्जन वर्मा ने इस देश के संविधान की बदौलत ही केंद्रीय और प्रादेशिक मंत्री होने का गौरव हासिल किया है। अपने विपक्षी दल की सरकार होने के कारण इस प्रकार के बयानों का दिया जाना अनुचित है। भारत की आमजनता को उनके यह बयान अनुचित लगे है। इस संदर्भ में रेसलर विनेश फोगाट से जुड़ा विषय भी देश में अनर्गल बयानबाजी का विषय बना रहा। इस विषय में पक्ष–विपक्ष में एक दूसरे पर आरोप लगाता रहा। रेसलर विनेश पर भी व्यक्तिगत टिप्पणियां की गई। भारतीय महिला पहलवान जिसने 6 अगस्त को एक दिन में तीन दिग्गज पहलवानों को चित कर इतिहास रच दिया था। अपनी कड़ी मेहनत से भारत देश को गोल्ड मेडल की दौड़ में खड़ा कर दिया। 7 अगस्त को उनका वजन 100 ग्राम अधिक निकला। ओलंपिक समिति के कड़े नियमो के चलते विनेश को 50 किग्रा वेट कैटेगरी में अयोग्य घोषित कर दिया। इससे पूर्व विनेश ने अपना वजन घटाने के लिए काफी जतन किए शरीर से खून निकालने, बाल काटने जैसे उपाएं भी किए। उनके प्रयास सराहनीय है। इस विषय पर देश के नेताओं और सोश्यल मीडिया पर चली बहस दुर्भाग्य पूर्ण है। दरअसल प्रजातंत्र में राजनैतिक आरोप–प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। यह एक प्रक्रिया का अंग है। अपनी बात सलीके से कही जानी चाहिए। इन बयानबाज नेताओं को यह ख्याल रखना चाहिए की देश का गौरव, मान बना रहे। भारत में राष्ट्र को लेकर स्नेह और प्रेम की अवधारणा है। देश की संसद को आस्था और श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। राष्ट्र के संवैधानिक प्रतीकों का आदर और सम्मान किया जाता है। राष्ट्र के लिए खेलने वाले खिलाड़ी राष्ट्र की धरोहर है। राष्ट्र की अस्मिता से जुड़े विषयों पर की जाने वाली अनर्गल बयानबाजी पर संयम और नियंत्रण की आवश्यकता है। सोश्यल मीडिया और यूट्यूब के मंच पर भी इसी प्रकार की बहसों की भरमार है। इन बहसों को सुनकर, पढ़कर लगता है की राजनैतिक प्रतिस्पर्धा, नेताओं की भक्ति में डूबकर कुछ लोग और नेता राष्ट्र की अस्मिता के विषयों पर भी बयानबाजी कर देते है। भारत एक महान प्रजातांत्रिक राष्ट्र है, यहां की जनता में राष्ट्रभक्ति का भाव कूट–कूट भरा हुआ है। आजादी के मूल्यों को देश का आमजनमानस पहिचानता है। 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी हजारों लाखों वीरो शहीदों के बलिदान का प्रतिफल है। भारत की आजादी को प्राप्त करने में हर धर्म, जाति, प्रांत के लोगो का योगदान रहा है। राष्ट्र की गरिमा, गौरव और सम्मान के विरुद्ध की जाने वाली टिप्पणी भारत की आमजनता के लिए असहनीय है। इस विषय नियंत्रण, संयम और सख्ती की आवश्यकता है।

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