पीठ ने कहा, ‘यदि किसी अभियुक्त को आरोप तय किए बिना करीब पांच वर्षों तक कैद रखा जाता है, तो जल्द सुनवाई के अधिकार को तो छोड़ ही दें, यह बिना सुनवाई के सजा देने के बराबर होगा।’ सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट और महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि वे एक ऐसा तंत्र विकसित करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आरोपियों को हर तारीख पर ट्रायल जज के सामने शारीरिक रूप से या वर्चुअल रूप से पेश किया जाए, ताकि सुनवाई लंबी न चले। दरअसल मकोका के तहत गिरफ्तार एक आरोपी की जमानत याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ये दुखद और खेदजनक स्थिति
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता को ट्रायल जज के सामने शारीरिक या वर्चुअल रूप से पेश न किए जाने के कारण मामले की सुनवाई लंबी हो रही है। पीठ ने कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है बल्कि कई मामलों में ऐसी समस्या होती है और यह दुखद और खेदजनक स्थिति है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम बॉम्बे उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, महाराष्ट्र राज्य के गृह सचिव और महाराष्ट्र राज्य के विधि एवं न्याय सचिव को निर्देश देते हैं कि वे एक साथ बैठकर एक ऐसा तंत्र विकसित करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अभियुक्तों को हर तारीख पर या तो शारीरिक रूप से या वर्चुअल रूप से ट्रायल जज के समक्ष पेश किया जाए। अभियुक्तों के पेश न होने के आधार पर सुनवाई को लंबा न खींचा जाए।’ 18 दिसंबर को पारित अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि पिछले छह वर्षों में, 102 तारीखों में से अधिकतर तारीखों पर अभियुक्त को शारीरिक रूप से या वर्चुअल रूप से न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया।
पीठ ने कहा- यह बिना सुनवाई सजा देने के बराबर
पीठ ने कहा, ‘यदि किसी अभियुक्त को आरोप तय किए बिना करीब पांच वर्षों तक कैद रखा जाता है, तो जल्द सुनवाई के अधिकार को तो छोड़ ही दें, यह बिना सुनवाई के सजा देने के बराबर होगा।’ पीठ ने कहा कि इतनी देरी पीड़ित के अधिकारों के हित में भी नहीं है। पीठ ने उसके आदेश की एक प्रति उच्च न्यायालय के महापंजीयक और महाराष्ट्र सरकार के गृह और विधि एवं न्याय सचिवों को भेजने और इस पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके बाद पीठ ने अपीलकर्ता को जमानत देने का निर्देश दिया।
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