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महाकुंभ से साध्वी बनकर लौंटी 13 वर्षीय राखी


आगरा के पेठा फैक्टरी के श्रमिक की 13 वर्षीय बेटी राखी ने जूना अखाड़े में दीक्षा ली। वे साध्वी बन गईं, जिसके बाद वहां से उन्हें नया नाम मिला। लेकिन उन्हें कम उम्र की वजह से महाकुंभ से घर वापस भेज दिया गया। प्रयागराज में महाकुंभ से पहले टरकपुरा गांव की राखी जूना अखाड़े की दीक्षा लेकर साध्वी बन गई है। पेठा फैक्टरी के श्रमिक की बेटी राखी ने डौकी और कुंडौल में पढ़ाई की है। साध्वी बनी राखी के परिजनों में इससे खुशी का माहौल है।राखी के 65 वर्षीय दादा रोहतान सिंह धाकरे ने बताया कि बचपन से ही राखी पढ़ने लिखने में तेज रही है। पूजा पाठ में उसकी आस्था है। हम लोगों को यह जानकारी भाई ओम गिरी महाराज ने दी थी। रोहतान सिंह के साथ उनके पुत्र संदीप उर्फ दिनेश रहते हैं। वह पेठा फैक्टरी में काम करते हैं। संदीप की सबसे बड़ी बेटी राखी है, जबकि दूसरी बेटी निक्की सात साल की है। विलासपुरा, हरियाणा में कौशल गिरी महाराज का आश्रम है। बरसों से परिवार उनसे जुड़ा हुआ है। गांव के काली मां मंदिर पर तीन साल से लगातार कथा हो रही है। तब से राखी का आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया।
दादी राधा देवी ने बताया कि राखी सिर्फ पढ़ाई और पूजा पाठ पर ही ध्यान देती थी। राखी के पिता संदीप उर्फ दिनेश ने बताया कि पुत्री राखी ने कक्षा एक से तीन तक कानपुर में अपने मामा के यहां पढ़ाई की थी। कक्षा 4 से 7 तक महादेव इंटर कॉलेज डौकी में पढ़ाई करने के बाद कक्षा 7 से 9 तक कुंडौल के स्प्रिंगफील्ड इंटर कॉलेज में पढ़ाई की है। राखी शुरू से ही भक्ति में लीन रहने लगी। बहुत कम बोलती है।
स्कूल से आकर खाना पीना खाकर अपने पूजा पाठ में लग जाती थी। सभी लोग प्रयागराज में 20 दिसंबर को गए थे। अचानक से बेटी राखी के मन में भक्ति जागृत हुई और अपनी स्वेच्छा से महाकुंभ जूना अखाड़े में दीक्षा लेकर शामिल हो गई। परिवार के लोगों ने काफी समझाया, लेकिन उसने मना कर दिया। राखी की मां रीमा सिंह धाकरे घरेलू महिला हैं।
प्रयागराज महाकुंभ से गोकुल लौटीं राखी
साध्वी बनी 13 वर्षीय राखी को कम उम्र के कारण जूना अखाड़े ने घर वापस भेज दिया। वहां उन्हें गौरी नाम गौरी गिरी महारानी दिया गया। वे परिजनों के साथ मथुरा के गोकुल आ गईं। राखी परिवार की सबसे बड़ी बेटी हैं। दूसरी बेटी निक्की सात साल की है। परिवार कौशल गिरी महाराज से वर्षों से जुड़ा हुआ है। इनका बिलासपुर, हरियाणा में आश्रम है। गांव के काली मां मंदिर पर तीन साल से लगातार कथा हो रही है। ग्रामीणों के मुताबिक, तभी से राखी का झुकाव अध्यात्म की ओर हो गया था। राखी की मां रीमा सिंह धाकरे घरेलू महिला हैं।

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