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“महाकुंभ में आस्था का महासागर, संस्कृति और मानवता का जागरण”


जब श्रद्धा की धाराएं उमड़ती हैं, तो गंगा-यमुना भी पवित्रता के नए रंग में रंग जाती हैं। जब करोड़ों आस्थावान आत्मा की शुद्धि के लिए संगम में डुबकी लगाते हैं, तो समय ठहर सा जाता है।प्रयागराज संगम का महाकुंभ केवल एक आयोजन नहीं था, बल्कि यह दिव्यता, आध्यात्मिक चेतना और संस्कृति का महासंगम था, जहां धर्म की ध्वनि, भक्ति की लहरें और मानवता की गूंज एक साथ सुनाई दी। पिछले 45 दिनों तक प्रयागराज का संगम तट केवल भूमि का टुकड़ा नहीं रहा, बल्कि यह साक्षात ब्रह्मांड का वह धाम बन गया, जहां संतों की वाणी से जीवन का ज्ञान बरसा, साधुओं की साधना से भक्ति पुष्पित हुई और श्रद्धालुओं की आस्था से धर्म की गंगा अविरल प्रवाहित हुई। जिसने एक बार यहां आकर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई, वह अपने भीतर एक नई ऊर्जा, नई चेतना और नया जीवन लेकर लौटा।अब जब यह महास्नान समाप्त हो चुका है, तो संगम तट शांत हो गया है, लेकिन उसके कण-कण में अब भी महामंत्रों की गूंज और आरती की दिव्य आभा जीवंत है। जहां कल तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती थी, वहां अब शांति का साम्राज्य है, लेकिन गंगा-यमुना की लहरों में अब भी आस्था की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। यह महाकुंभ केवल एक स्नान पर्व नहीं था, बल्कि यह जीवन को नई दिशा देने वाला युगांतकारी क्षण था, जिसने करोड़ों लोगों को आध्यात्मिक उत्थान और आत्मशुद्धि की राह दिखाई।इस भव्य आयोजन की सफलता केवल भक्तों की आस्था से नहीं, बल्कि उन कर्मयोगियों के परिश्रम से भी संभव हुई, जिन्होंने दिन-रात सेवा की। प्रशासन, सुरक्षा बलों और सफाई कर्मियों ने इस दिव्य आयोजन को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन कर्मवीरों को नमन करते हुए कहा, “इन्होंने महाकुंभ को केवल भव्य नहीं, बल्कि स्वच्छ और सुव्यवस्थित भी बनाया, जो युगों-युगों तक एक मिसाल रहेगा।”महाकुंभ ने केवल आस्था का दीप नहीं जलाया, बल्कि पर्यावरण जागरूकता का भी संदेश दिया। मां गंगा और यमुना की पवित्रता को बनाए रखने का संकल्प हर श्रद्धालु ने लिया। यह आयोजन हमें सिखा गया कि नदियां केवल जल की धाराएं नहीं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता और जीवन का आधार हैं। एक संत ने कहा, “गंगा को स्वच्छ रखना केवल सरकार का नहीं, हर भक्त का कर्तव्य है, क्योंकि यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी मां है।”महाकुंभ समाप्त हो सकता है, लेकिन इसकी गूंज कभी समाप्त नहीं होगी। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण का महासंगम था। जब तक गंगा-यमुना बहती रहेंगी, जब तक आस्था का दीप जलता रहेगा, तब तक इस महाकुंभ की दिव्यता करोड़ों हृदयों में अमर रहेगी। यह अनुभव केवल उन लोगों तक सीमित नहीं, जिन्होंने यहां कदम रखा, बल्कि यह उन तक भी पहुंचेगा, जो युगों-युगों तक इसकी कथा सुनेंगे और प्रेरित होंगे। महाकुंभ की समाप्ति एक यात्रा का अंत नहीं, बल्कि आत्मजागृति की नई शुरुआत है, जो अनंत काल तक मानवता को प्रकाशमान करती रहेगी।

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