कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के खिलाफ व्यवस्थागत भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि योग्य उम्मीदवारों को उपयुक्त नहीं पाया गया (एनएफएस) कहकर खारिज करने की प्रथा मनुवाद का एक नया रूप है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह के साथ संवाद में यह दावा भी किया मोदी सरकार शिक्षा रूपी हथियार को कुंद करने में लगी हुई है। उन्होंने बीते 22 मई को दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर का दौरा किया था और छात्रों से बातचीत की थी। राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ अब नया मनुवाद है। एससी /एसटी/ओबीसी के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर ‘अयोग्य’ ठहराया जा रहा है – ताकि वे शिक्षा और नेतृत्व से दूर रहें। उनके मुताबिक, बाबासाहेब डॉ बी आर आंबेडकर ने कहा था: शिक्षा बराबरी के लिए सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन मोदी सरकार उस हथियार को कुंद करने में जुटी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में 60 प्रतिशत से ज़्यादा प्रोफ़ेसर और 30 प्रतिशत से ज़्यादा एसोसिएट प्रोफ़ेसर के आरक्षित पदों को नॉट फाउंड सूटेबल बताकर खाली रखा गया है। उन्होंने दावा किया कि यह कोई अपवाद नहीं है क्योंकि आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय…, हर जगह यही साज़िश चल रही है। उन्होंने कहा कि नॉट फाउंड सूटेबल संविधान पर हमला है और सामाजिक न्याय के साथ धोखा है। राहुल गांधी ने कहा, यह सिर्फ़ शिक्षा और नौकरी की नहीं – हक़, सम्मान और हिस्सेदारी की लड़ाई है। मैंने छात्रों से बात की। अब हम सब मिलकर भाजपा/आरएसएस की हर आरक्षण-विरोधी चाल को संविधान की ताक़त से जवाब देंगे। वीडियो में उन्होंने यह दावा भी किया कि हिंदुत्व प्रोजेक्ट का मकसद दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्गों के इतिहास को मिटाना है। राहुल गांधी ने यूट्यूब पर अपने पोस्ट में कहा कि निजीकरण का असली मतलब है संस्थाओं से दलितों और ओबीसी को अलग रखना। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि नई शिक्षा नीति पिछड़े, दलित, आदिवासी युवाओं से प्रतिस्पर्धा का लाभ छीनने का प्रयास है तथा शिक्षण संस्थाओं का निजीकरण कर शिक्षा महंगी की जा रही है और इससे भारत का एक बहुत बड़ा वंचित वर्ग अच्छी शिक्षा तक पहुंच नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा, हमारी लड़ाई इसी बढ़ती असमानता के खिलाफ़ है। इसका जवाब है जाति जनगणना, आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की सीमा हटाना, अनुच्छेद 15(5) से निजी संस्थाओं में भी आरक्षण, एससी एसटी सब प्लान जो दलित आदिवासी नीतियों को उचित आर्थिक सहायता दिलवाए।
