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मोहन भागवत ने पहलगाम हमले के बाद राजनीतिक समझ की सराहना की


आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को भारतीयों से बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के उभरते खतरों का सामना करने के लिए एकजुट और आत्मनिर्भर बने रहने का आह्वान किया। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 के समापन समारोह में बोलते हुए भागवत ने आधुनिक युद्ध और आतंकवाद से लेकर आंतरिक कलह और धर्मांतरण तक के मुद्दों पर बात की।उन्होंने वैचारिक विभाजन का जिक्र करते हुए कहा, “जब तक दो-राष्ट्र सिद्धांत का विचार रहेगा और जब तक दोहरी बात खत्म नहीं होगी, तब तक देश खतरे में रहेगा।” उनके विचार में, भारत के सामाजिक ताने-बाने को चुनौती देना जारी है। “युद्ध बदल गया है। तकनीक बदल गई है। लेकिन सच्चाई यह बताती है कि राष्ट्र के लिए कौन खड़ा है।”भागवत ने आज की दुनिया में साइबर युद्ध और छद्म युद्ध की बढ़ती प्रासंगिकता का उल्लेख किया और भारत को अपनी क्षमताएं विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हम किसी को अपना दुश्मन नहीं मानते। लेकिन हमें तैयार रहना चाहिए। आत्मनिर्भरता ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले और उसके बाद भारत द्वारा की गई कार्रवाई के पश्चात राजनीतिक वर्ग में दिखी आपसी समझ जारी रहनी चाहिए और यह एक स्थायी विशेषता बननी चाहिए। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का परोक्ष संदर्भ देते हुए कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों की हत्या के बाद लोग आक्रोशित थे और चाहते थे कि दोषियों को सजा मिले और कार्रवाई भी हुई।ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और इसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया था और इसके बाद जवाबी कार्रवाई में पड़ोसी देश के हवाई ठिकानों को नुकसान पहुंचाया था। भागवत ने नागपुर में आरएसएस के स्वयंसेवकों के लिए कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए समाज में एकता का संदेश भी दिया। जबरन धर्मांतरण करने के खिलाफ मुखर होते हुए आरएसएस नेता ने कहा, ‘‘धर्मांतरण हिंसा है। जब यह स्वेच्छा से किया जाता है तो हम इसके खिलाफ़ नहीं हैं। लेकिन लालच देने, जबरन धर्मांतरण कराने और दबाव डालने के हम खिलाफ हैं। लोगों को यह बताना कि उनके पूर्वज गलत थे, उनका अपमान करना है। हम ऐसी प्रथाओं के खिलाफ हैं।’’भागवत ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हम (धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई में) आपके साथ हैं।’’ भागवत ने एक बार फिर 7-10 मई के भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष का जिक्र करते हुए रेखांकित किया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद की गई कार्रवाई में सभी ने देश के लिए निर्णय लेने वालों के साहस को देखा। उन्होंने कहा, ‘‘पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले के बाद कार्रवाई की गई। इसमें एक बार फिर हमारी सेना का पराक्रम दिखा। प्रशासन की दृढ़ता भी देखने को मिली।’’ आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘राजनीतिक वर्ग ने भी आपसी समझ दिखाई। समाज ने भी एकता का संदेश दिया। यह जारी रहना चाहिए और स्थायी होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि भारत को अपनी सुरक्षा के मामलों में आत्मनिर्भर होना चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने जोर देकर कहा कि भारत को सुरक्षा के मामलों में आत्मनिर्भर होना चाहिए। पाकिस्तान का नाम लिये बिना भागवत ने कहा, ‘‘जो लोग भारत से सीधी लड़ाई नहीं जीत सकते, वे हज़ारों घाव देकर और छद्म युद्ध छेड़कर हमारे देश को लहूलुहान करना चाहते हैं।’’ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने लंदन पर लगभग एक महीने तक बमबारी की, जिससे उसे उम्मीद थी कि ब्रिटेन आत्मसमर्पण कर देगा।जवाब में, प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने राष्ट्र को संबोधित किया और बाद में संसद को बताया कि अंग्रेज़ ‘‘समुद्र और तटों पर’’ लड़ेंगे। भागवत ने इस प्रकरण का उल्लेख करते हुए कहा कि चर्चिल ने कहा था कि समाज ही सच्चा शेर है और उन्होंने तो केवल उसकी ओर से दहाड़ लगाई थी। आरएसएस नेता ने कहा कि एक व्यक्ति का लाभ कभी-कभी दूसरे के लिए नुकसानदेह हो सकता है, तथा व्यक्तियों के बीच परस्पर समझ की कमी असंतोष का कारण बन सकती है। उन्होंने रेखांकित किया कि राष्ट्रीय हित में किसी भी समूह या वर्ग को दूसरे के साथ टकराव में नहीं आना चाहिए।आवेगपूर्ण तरीके से काम करना, अनावश्यक बहस में उलझना या कानून को अपने हाथ में लेना देश हित में नहीं है। आरएसएस प्रमुख ने उस समय को याद करते हुए कहा जब भारत स्वतंत्र नहीं था तब (ब्रिटिश) शासकों ने विभाजन को बढ़ावा दिया और विघटनकारी तत्वों का समर्थन किया, जिससे आम लोगों को लड़ाई के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने कहा कि आज सरकार संविधान के तहत काम करती है। भागवत ने अपमानजनक और अति प्रतिक्रिया के प्रयोग के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि कुछ लोग निजी लाभ के लिए भड़काऊ भाषण देते हैं।आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हमारी जड़ें एकता में हैं, विभाजन में नहीं।’’ उन्होंने आगे कहा कि भले ही लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हों और अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करते हों, लेकिन एकता सभी मतभेदों से ऊपर है। भागवत ने दलील दी कि भारतीयों के बीच जातीय मतभेद का विचार ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा बढ़ावा दिया गया एक गलत विचार है। मंत्रिमंडल में शामिल रहे आदिवासी नेता अरविंद नेताम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए।कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय नाम से आयोजित 25 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में देश भर से 840 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। यह शिविर 12 मई को नागपुर के रेशिमबाग क्षेत्र स्थित डॉ हेडगेवार स्मृति मंदिर में शुरू हुआ था। छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखने वाले नेताम ने कहा कि किसी भी राज्य सरकार ने धर्मांतरण के मुद्दे को अब तक गंभीरता से नहीं लिया है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि आरएसएस ही एकमात्र संस्था है जो इस क्षेत्र में हमारी मदद कर सकती है।’’नेताम ने कहा कि आरएसएस को नक्सलवाद समाप्त होने के बाद केन्द्र सरकार पर कार्ययोजना बनाने के लिए दबाव डालना चाहिए, ताकि यह समस्या फिर से न पनपे। नेताम ने कहा कि किसी भी सरकार ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 या पेसा को लागू नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार चुप है और यहां तक ​​कि उद्योगपतियों की मदद कर रही है।’’ पेसा अधिनियम का उद्देश्य ग्राम सभाओं के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासन सुनिश्चित करना, उन्हें संसाधनों का प्रबंधन करने तथा अपने समुदायों से संबंधित निर्णय लेने में सशक्त बनाना है।

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