कभी यूपी की सत्ता में अपने ‘दलित-ब्राह्मण’ सोशल इंजीनियरिंग से कुर्सी पाने वाली पार्टी आज अपने इसी फॉर्मूले में फेल होती दिख रही है। ‘दलित-मुस्लिम’ और अब जाट-दलित दांव भी फेल हो गया है। उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में भी पार्टी का जनाधार खिसक गया जिससे पार्टी के नेताओं की चिंता बढ़ गई है।
न अकेले और न ही गठबंधन करके वंचितों को जोड़े रख पा रही हैं मायावती
युवा भतीजे आकाश भी नहीं दिखा सके हैं यूपी में अपना जादू
अजय जायसवाल, जागरण, लखनऊ। कभी वंचित-शोषित समाज पर एकछत्र राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व ही अब खतरे में दिखाई दे रहा है। लोकसभा के बाद हरियाणा व जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के हालिया नतीजों से साफ है कि ढलती उम्र के साथ ही बसपा प्रमुख मायावती की वंचित समाज पर पकड़ ढीली होती जा रही है।‘दलित-ब्राह्मण’ सोशल इंजीनियरिंग से लेकर ‘दलित-मुस्लिम’ और दलित-जाट जैसे फॉर्मूलों व प्रयोगों के चुनाव दर चुनाव फेल होने से पार्टी का प्रदर्शन बद से बद्तर होता जा रहा है।
