झारखंड की हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली जेएमएम गठबंधन सरकार के लिए विधानसभा चुनाव जीतने की राह मुश्किल होती जा रही है। दरअसल, प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) से जुड़ी गड़बड़ियों के मुद्दे पर सरकार बुरी तरह घिरी हुई है। इन मुद्दों पर सरकार जनता को जवाब नहीं दे पा रही है।हाल ही में, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह झारखंड दौरे पर आये थे। इस दौरान उन्होंने परीक्षा पेपर लीक का मुद्दा उठाकर सत्ताधारी जेएमएम पर निशाना साधा। इसी के साथ शाह ने जनता से वादा किया कि अगर राज्य में उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो एसआईटी द्वारा इन मामलों की जांच होगी और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी।झारखंड की जनता को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा, ‘परीक्षा के 11 से ज्यादा पेपर लीक हुए, मगर हेमंत बाबू खामोश हैं क्योंकि पेपर लीक कराने वाले उन्हीं के चट्टे-बट्टे हैं। आपने भले संरक्षण दिया, मैं कहकर जाता हूं, हम एसआईटी बनाकर पेपर लीक करने वालों को जेल की सलाखों के पीछे बांधने का काम करेंगे।’
हेमंत सरकार के रवैए पर उठे कई सवाल
हेमंत सरकार द्वारा हाल ही में पेपर लीक मामले से निपटने के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं। यह झारखंड के लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है। सरकार द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की कड़ी आलोचना की गई है। कई लोगों का तर्क है कि अगर जेएमएम सरकार ने परीक्षा सुरक्षा को प्राथमिकता दी होती, तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता था। यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकार ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की भर्ती परीक्षाओं में संदिग्ध अनियमितताओं को नजरअंदाज किया और उचित कार्रवाई करने में विफल रही।इससे स्वाभाविक सवाल उठता है: पेपर लीक क्यों हुआ? क्या सरकार में इसे रोकने की क्षमता की कमी थी या फिर निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करने की उसकी प्रतिबद्धता में कमी थी? उल्लेखनीय रूप से, अन्य राज्यों ने भी इसी तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए हैं, जिनमें से कुछ ने परीक्षा की शुचिता बनाए रखने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। सरकार की ढीली प्रतिक्रिया के कारण संदेह पैदा हुआ। हेमंत सरकार को पेपर लीक रोकने के मामले में अपने कमजोर रुख के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। उम्मीदवारों को त्वरित कार्रवाई और जवाबदेही की उम्मीद थी, लेकिन देरी के कारण लोगों में निराशा हुई। कवर-अप के आरोपों ने जनता के भरोसे को और नुकसान पहुंचाया। प्रशासन के धीमे, अपारदर्शी संचार ने संदेह को बढ़ावा दिया कि यह सार्थक कार्रवाई करने की तुलना में अपनी छवि को बचाने पर अधिक केंद्रित था। इस निष्क्रियता ने न केवल वर्तमान नौकरी चाहने वालों को प्रभावित किया है, बल्कि राज्य के कई प्रतिभाशाली युवाओं के भविष्य की संभावनाओं पर भी संदेह पैदा किया है।जेएमएम सरकार की जांच में भरोसा क्यों खत्म हो गया है? अब कई लोगों को संदेह है कि भ्रष्टाचार और पक्षपात सरकारी भर्ती प्रथाओं को प्रभावित कर सकता है। इसने स्वतंत्र या न्यायिक जांच की मांग की है, क्योंकि राज्य की आंतरिक जांच में विश्वास कम हो रहा है।
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