शिअद पर संकट के बादल छाए हैं। आगे भी राह आसान नहीं है। संगठन दोबारा खड़ा करने और पार्टी का प्रदर्शन सुधारने की बड़ी चुनौती है। सुधार लहर का भी दबाव है। सुखबीर बादल ने शिरोमणि अकाली दल की प्रधानगी से इस्तीफा देकर अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने का प्रयास किया है, बावजूद इसके उनकी पार्टी के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाली है। पार्टी के सामने संगठन को दोबारा खड़े करने की बड़ी चुनौती है।अधिकतर वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और नई नाव पर सवार हो गए हैं। साथ ही शिअद सुधार लहर के नाम से अलग से एक गुट बन गया है, जो शिअद में बदलाव को लेकर लगातार हमलावर है। इसी तरह 2017 के बाद हुए सभी चुनाव में पार्टी का गिरता ग्राफ भी चिंता का विषय बना हुआ है और पार्टी के सामने इसे सुधारने की बड़ी चुनौती है।पिछले कुछ चुनाव में पार्टी को सिर्फ हार का सामना ही नहीं करना पड़ा है, बल्कि वोट बैंक को भी काफी नुकसान हुआ है। सोमवार को पार्टी की वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई है, जिसमें सुखबीर बादल के इस्तीफे के साथ ही आगे की कार्रवाई तय करने पर फैसला होगा। सुधार लहर भी जल्द ही बैठक बुलाने जा रही है, जिसमें वह भी अपनी रणनीति तय करेगी।पंजाब में 2017 से सत्ता से हटने के बाद ही शिअद का ग्राफ लगातार गिरता रहा है। अधिकतर सीनियर नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं। पार्टी में खुद को सरपरस्त बताने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा भी सुधार लहर के समर्थन में खुलकर उतर आए, जिस कारण शिअद को उनकी बर्खास्तगी के आदेश जारी करने पड़े। पार्टी नेतृत्व में बदलाव को लेकर गुरप्रताप सिंह वडाला, बीबी जगीर कौर, प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा, परमिंदर सिंह ढींडसा, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, सुरिंदर सिंह ठेकेदार और चरणजीत सिंह बराड़ का भी एक अलग धड़ा बन गया। विरोध बढ़ता देख शिअद को इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा।पार्टी के सीनियर नेताओं के लगातार बाहर जाने से लीडरशिप बिखर गई और संगठन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा। संगठन को दोबारा खड़ा करना ही पार्टी के सामने प्रमुख चुनौती है। इससे पहले सीनियर नेता विरसा सिंह वल्टोहा भी पार्टी छोड़ चुके हैं। पूर्व मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों को खुद ही शिअद ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते निष्कासित कर दिया था। इसी तरह पार्टी के दो बार के विधायक सुखविंदर सुक्खी और हाल ही में सुखबीर बादल के खास हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लो ने भी अपना इस्तीफा दे दिया था।
चुनाव में इस तरह गिरता गया ग्राफ
2017 विधानसभा चुनाव के बाद से ही शिअद का ग्राफ गिरता चला गया है। 2017 में शिअद 68 सीटों से सिमटकर 18 पर पहुंच गई। 2019 लोकसभा चुनाव में भी राज्य में शिअद के हाथ सिर्फ 2 सीटें लगी थी और उसका सहयोगी दल भाजपा भी 2 सीटें जीत पाया। 2022 विधानसभा चुनाव में शिअद के हाथ सिर्फ 3 सीटें लगी और पार्टी में लीडरशिप बदलाव की आवाज और तेज हो गई। इसी तरह 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी। इस दौरान पार्टी के वोट शेयर में भी तेजी से भारी गिरावट आई।
पांच सदस्यीय समिति बनाएं, चुनाव की अभी जरूरत नहीं : जगीर कौर
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पूर्व प्रधान बीबी जगीर कौर ने कहा कि प्रधान पद के चुनाव की अभी जरूरत नहीं है। पहले तो पांच सदस्यीय समिति बनाई जाए और उसके बाद ही भर्ती शुरू की जाए। इस सब के बाद ही निष्पक्ष चुनाव करवाया जाए। सुधार लहर की तरफ से जल्द ही बैठक बुलाई जाएगी और अपनी आगे की रणनीति तय की जाएगी।
