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लोकसंस्कृति का उत्सव हैं ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाएँ


राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क लखनऊ। संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा प्रदेश की आत्मा में रची-बसी विविध कलात्मक परंपराओं को फिर से जीवंत करने का एक सांस्कृतिक अनुष्ठान जो इस राज्य की सांस्कृतिक चेतना को नवजीवन देने वाली पुनर्जागरणीय पहल के रुप में उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के पुरोधा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन से संप्रेरित एवं संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह की नीतिगत दृष्टि से दिशानिर्देशित पहली बार प्रदेश के 75 जनपदों में ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाएँ न केवल लोकजीवन में रची-बसी कलाओं के संरक्षण का जीवंत उपक्रम हैं, सांस्कृतिक वाचिक परंपरा, लोकसंवाद, राग-रागिनी, अभिनय, नृत्य और शिल्पकला की विविधधाराओं का एक अनुपम संगम है। संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा संचालित अनेक संस्थाएं ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाएँ आयोजित कर रही हैं उसी के क्रम में संगीत नाटक अकादमी द्वारा ग्रीष्मकालीन कार्यशालाएँ 15 मई से 15 जून तक संचालित की गई। इस एक माह की अवधि में पूरे प्रदेश में अबतक 1,200 से अधिक कार्यशालाओं का आयोजन हुआ, जिनमें नाट्य, नृत्य, संगीत, चित्रकला, लोकगायन, कठपुतली, अभिनय, शास्त्रीय गायन, लोक वाद्य, तबला, सितार, भरतनाट्यम, कथक, लोकनाट्य, पपेटरी, मुखौटा निर्माण, लोकनृत्य, संवाद लेखन, लिपि प्रशिक्षण जैसे विविध विषयों को सम्मिलित किया गया। इन कार्यशालाओं में सभी वर्गों और उम्र के लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिसमें बाल कलाकारों से लेकर युवा और कलासाधक तक शामिल थे।प्रदेश में कार्यशालाओं का आयोजन सम्बन्धित जनपद के विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय, संगीत एवं नाटक की संस्थाओं, बाल बंदी गृहों, ग्राम पंचायतों एवं अन्य संस्थाओं स्थानों इत्यादि पर किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत लगभग 20 विद्यालय, 51 संगीत एवं नाट्य की संस्थाएं, एक बाल बंदीगृह, दिव्यांग सेवा समिति तथा अन्य संस्थाएं इत्यादि सम्मिलित हैं। चित्रकूट में कोल आदिवासी बालिकाओं को सम्मिलित करते हुए प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है इसमें लगभग 50 कोल आदिवासी बालिकाओं द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त किया गया। बाल बंदीगृह में 11 बच्चों ने, दिव्यांग में 30 बच्चों ने, मलिन बस्ती के 40 बच्चो ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।अकादमी द्वारा प्रदेश के 75 जिलों में से 71 जिलों में कुल 89 कार्यशालाओं का संचालन किया जा रहा है जिसमें से अब तक 49 कार्यशालाएं समाप्त हो चुकी हैं, वर्तमान में 38 कार्यशालाएं चल रही हैं तथा 08 कार्यशालाएं प्रस्तावित हैं।उत्तर प्रदेश एक सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध प्रदेश है। यहाँ की लोक कलाएँ जैसे बिरहा, आल्हा, कजरी, होरी, नौटंकी, रासलीला, भजन, निर्गुण गायन, रम्मत, स्वांग आदि वर्षों से जनमानस के सांस्कृतिक जीवन का अभित्र हिस्सा रही हैं। अकादमी द्वारा आयोजित इन कार्यशालाओं के माध्यम से न केवल इन लोककलाओं को जीवित रखा जा रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को भी उनकी गहराई, परंपरा और सौंदर्य से परिचित कराया जा रहा है। इसमें प्रशिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही, जो स्वयं वर्षों से इन विधाओं के साधक रहे हैं और जिन्होंने न केवल तकनीकी दक्षता प्रदान की, बल्कि विद्यार्थियों में कला के प्रति समर्पण और संवेदना का भाव भी जाग्रत किया।इस पूरे आयोजन का उद्देश्य केवल प्रशिक्षण देना नहीं था, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक संवाद स्थापित करना था। कार्यशालाओं के अंतर्गत स्थानीय कलाकारों, लोक साधकों, रंगकर्मियों और विद्यार्थियों के मध्य एक गहन संवाद की प्रक्रिया शुरु हुई, जिससे कला की विभित्र शाखाएँ एक-दूसरे से जुड़ सकीं और एक समावेशी सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण हुआ। इसके अतिरिक्त, इन कार्यशालाओं ने स्थानीय स्तर पर सांस्कृतिक नेतृत्व को भी प्रोत्साहन दिया, जिससे कई नए प्रशिक्षक, युवा कलाकार और कला समूह सामने आए, जिनमें से कई को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने की संभावनाएँ हैं।सांस्कृतिक संवाद और प्रशिक्षण के अतिरिक्त, अकादमी द्वारा कार्यशालाओं के समापन पर भव्य प्रस्तुतियाँ भी आयोजित की गई, जिसमें विद्यार्थियों ने सीखी गई कलाओं का मंचन किया। इन कार्यक्रमों को देखकर यह स्पष्ट था कि कला के प्रति जिज्ञासा और लगन केवल महानगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम्य क्षेत्रों और छोटे कस्बों में भी एक जीवंत सांस्कृतिक चेतना विद्यमान है। कार्यशालाओं की सफलता इस बात का संकेत है कि यदि उचित मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और मंच मिले तो उत्तर प्रदेश की भूमि से अगली पीढ़ी के अनेक कलाकार, लेखक, नर्तक और संगीतकार उभर सकते हैं। इन कार्यक्रमों के दौरान अकादमी ने यह भी सुनिश्चित किया कि हर जिले में शैलियों और पारंपरिक विधाओं को प्राथमिकता दी जाए। उदाहरण के लिए, वाराणसी में बनारस घराने के तबला और शास्त्रीय संगीत की कार्यशालाएँ आयोजित की गईं, तो गोरखपुर और बलिया में भोजपुरी लोकगीतों और लोकनाट्य पर विशेष ध्यान दिया गया। अयोध्या, मथुरा और वृंदावन में रासलीला और कृष्णभक्ति संगीत पर केंद्रित कार्यशालाएँ संचालित की गईं, वहीं बुंदेलखंड में आल्हा, बंबुलिया और राई नृत्य पारंपरिक लोक कलाओं पर विशेष प्रशिक्षण दिया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अकादमी का दृष्टिकोण केवल ’एकरुपता’ नहीं, बल्कि ’बहुलता में एकता’ को स्वीकार करने वाला है। यह भी उल्लेखनीय है कि इन कार्यशालाओं के माध्यम से बाल कलाकारों को भी उनके रचनात्मक विकास का अवसर मिला। स्कूलों की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों को ध्यान में रखते हुए इन्हें इस अवधि में आयोजित किया गया, जिससे विद्यार्थियों की भागीदारी सहज रही। अभिभावकों ने भी इस पहल का स्वागत किया और इसे बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक बताया। कार्यशालाओं में भाग लेने वाले बच्चों की संख्या लगभग 40,000 से अधिक रही, जो अकादमी की पहुँच और प्रभाव का प्रमाण है।इस ग्रीष्मकालीन पहल के सफल आयोजन में जिलों के प्रशासन, स्थानीय संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों, कलाकार संगठनों और स्वयंसेवी समूहों का भरपूर सहयोग रहा। कई जिलों में कार्यशालाएँ सरकारी विद्यालयों, कला केंद्रों, नगर पालिका भवनों, सामुदायिक सभागारों और संग्रहालयों में आयोजित की गई, जिससे व्यापक जनसहभागिता सुनिश्चित हो सकी। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नागरिक समाज की भागीदारी ने कार्यशालाओं को जन-आंदोलन का स्वरुप दिया। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा संचालित ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाएँ न केवल एक शैक्षिक या सांस्कृतिक अभ्यास भर नहीं रहीं, बल्कि यह प्रदेश के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरणादायक अध्याय बन गई हैं। इन्हें केवल एक कार्यक्रम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह सांस्कृतिक नेतृत्व, सामुदायिक एकता, परंपरा के संरक्षण और भविष्य की तैयारी का संगठित प्रयास है। कला को जब शिक्षा, संवाद और अभ्यास के साथ जोड़ा जाता है, तो वह समाज को न केवल सजग और संवेदनशील बनाती है, बल्कि उसमें नवाचार, सौदर्यबोध और समावेशन का भी बीज बोती है।उत्तर प्रदेश सरकार और संगीत नाटक अकादमी का यह प्रयास आने वाले वर्षों में न केवल प्रदेश को सांस्कृतिक रूप से और समृद्ध बनाएगा, बल्कि भारत की विविध सांस्कृतिक पहचान में उत्तर प्रदेश की भूमिका को और अधिक सशक्त एवं सजीव बनाएगा।

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