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थ्रिल से भरी प्लेन हाईजैक और आतंकवाद की कहानी योद्धा


सिद्धार्थ मल्होत्रा की इस मूवी ‘योद्धा’ की सबसे बड़ी खासियत है कि ये आपको आपकी सीट की पेटी लगातार बांधे रखने को मजबूर कर सकती है. स्क्रीन प्ले इस तरह से लिखा गया है कि दर्शकों के दिमाग से खेला गया है, आपको लगता है कि अब क्या होगा, अब क्या होगा? हालांकि एक स्तर पर आने के बाद आपको थोड़ी चिढ़ भी होती है कि इतना घुमा क्यों रहे हैं. कई बार आपको लगता है कि गुत्थी सुलझ गई कि फिर एक किरदार मूवी की कहानी पर हावी होकर कहानी में ट्विस्ट ला देता है, जबकि ये मूवी अब्बास मस्तान की मूवी नहीं बल्कि एक सीधा सादा लेकिन तेज ऑपरेशन है.सिद्धार्थ मल्होत्रा ‘अय्यारी’, ‘शेरशाह’ और ‘मिशन मजनू’ में पहले ही एक सोल्जर या सीक्रेट एजेंट का रोल कर चुके हैं, ‘योद्धा’ भी उसी की एक कड़ी है. जिसमें वो एक ऐसी यूनिट के ऑफिसर का रोल कर रहे हैं, जिसे कभी उनके पिता (रोनित रॉय) ने खड़ा किया था और एक ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए थे. इस यूनिट ‘योद्धा’ को लेकर अरुण कात्याल (सिद्धार्थ) काफी इमोशनल हैं, ये यूनिट बेहद खतरनाक ऑपरेशंस और अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए खड़ी की गई थी. लेकिन दर्शकों का मूड इस फास्ट पेस की मूवी से तब उखड़ता है, जब एक वक्त के बाद आपको ऐसा लगने लगता है जैसे आप सलमान की ‘टाइगर 3’ देख रहे हों, वही पाकिस्तान के पीएम की जान खतरे में, आतंकियों का बड़ा ऑपरेशन, पाकिस्तान की संसद आदि. वैसे भी ‘मैं हूं ना’, ‘टाइगर’ सीरीज की फिल्में सभी में पाकिस्तान को आतंक से पीड़ित देश के तौर पर दिखाया गया, जो कि वो हर इंटरनेशनल मंच पर दावा करता है और भारत हमेशा उसे आंतकियों का सहयोगी बताकर ये दावा खारिज करता रहा है. लेकिन हमारे फिल्मकार पाकिस्तान और खाड़ी के देशों में फिल्म से कमाई करने के लिए पाकिस्तान को आतंक का दुश्मन दिखाते रहे हैं. ‘योद्धा’यहीं मात खाती दिखती है.जबकि अरुण की पत्नी प्रियम्वदा (राशि खन्ना) एक सिविल सर्विस अधिकारी के रोल में हैं, जो नहीं चाहतीं कि अरुण ऑपरेशंस के दौरान ऊपर के ऑर्डर्स को दरकिनार करके अपनी जान खतरे में डाले. लेकिन वो बार बार करता है, और एक ऐसे ही ऑपरेशंस में अरुण की बदकिस्मती से एक बड़े साइंटिस्ट को किडनैप कर आतंकी उसकी लाश वापस भेज देते हैं. अरुण का घर टूट जाता है, यूनिट बंद कर दी जाती है और जांच शुरू हो जाती है. यूनिट के जांबाजों का अलग-अलग तरह की सिक्योरिटी सेवाओं में तबादला कर दिया जाता है. खुद अरुण लंदन जाने वाली एक फ्लाइट में जब खुद को उस फ्लाइट का एयर कमांडो बताता है, तो फ्लाइट की इंचार्ज (दिशा पटानी) तक चौंक जाती है.उसके बाद शुरू होता है एक ऐसा ऑपरेशन जिसमें उस फ्लाइट को हाईजैक करके पाकिस्तान उस वक्त ले जाया जाता है, जब खुद भारत के प्रधानमंत्री एक शांति समझौते के लिए वहां मौजूद थे और अरुण की पत्नी प्रियम्वदा भी. एक तरह से ‘रनवे 34’ की तरह दर्शकों को फ्लाइट में ही रोमांच को अलग-अलग स्तरों पर ले जाया जाता है. ‘रनवे 34’ के बाद इस मूवी को भी देखने के बाद कोई भी दर्शक आधे से ज्यादा फ्लाइट ऑपरेशन को समझ सकता है.पूरी मूवी सिद्धार्थ मल्होत्रा और राशि खन्ना पर ही फोकस थी, जहां राशि खन्ना का रोल कम हुआ, वो जगह दिशा पाटनी ने भर दी. दोनों ने ही कम समय में अपना असर छोड़ा है. सिद्धार्थ का ये रोल यानी एक कमांडो का, पहले भी कई बार देख चुके हैं, सो वो असरदार तो लगते हैं, लेकिन रोल में विविधता नहीं लगती. हालांकि चिरतंजन त्रिपाठी, रोनित रॉय आदि जैसे किरदारों का ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता था. फिल्म की गति इतनी तेज है कि रिलीफ के तौर पर आए गाने भी गैरजरूरी लगते हैं, कोई खास असर नहीं छोड़ते. लेकिन ज्यादा उम्मीदें लेकर ना जाएं, तो पैसा वसूल मूवी हो सकती है और उसकी वजह है इसकी तेजी, कम अवधि और मूवी में दर्शकों को बांधे रखने के लिए फैलाया गया जाल.इसके लेखक और दो निर्देशकों में से एक सागर अम्बरे इससे पहले ‘पठान’ व ‘उरीरू द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर रह चुके हैं, जबकि दूसरे निर्देशक पुष्कर झा ‘वॉर’, ‘सत्याग्रह’, ‘पठान’, ‘किक’ और ‘धड़क’ जैसी कई फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर रह चुके हैं. दोनों युवा हैं.

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