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शेषन की सलाह मानते तो आज जिंदा होते राजीव गांधी ?


न राजीव ने मानी सलाह न वीपी सिंह ने
लखनऊ । 21 मई 1991 को भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में थे। एक आत्मघाती बम विस्फोट हुआ और उनकी मौत हो गई। क्या उन्हें बचाया जा सकता था? वह टीएन शेषन की सलाह मान लेते तो आज जिंदा होते?ऐसे कुछ सवाल आज भी हैं। टीएन शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे और उनकी एक किताब ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लासरू एन ऑटोबायोग्राफी’ काफी चर्चित है। इस किताब में 1990 से 1995 तक सीईसी के रूप में उनके कार्यकाल के कई किस्से शामिल हैं। किताब में टीएन शेषन की राजीव गांधी को दी गई एक सलाह भी शामिल है। जिसे लेकर ये कयास लगाए जाते हैं कि अगर राजीव उनकी सलाह को मान लेते तो आज जिंदा होते। किताब ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लासरू एन ऑटोबायोग्राफी’ में 1988-89 के उस वक्त का जिक्र है जब स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप एसपीजी का ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा था। तब टीएन शेषन ने राजीव गांधी को सलाह दी थी कि एसपीजी के दायरे में पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों को रखा जाए। राजीव गांधी ने इस सलाह को नहीं माना था और कहा था कि इससे लोगों को लगेगा कि मैंने ऐसा अपना स्वार्थ देखते हुए किया है।किताब में टीएन शेषन ने लिखा है कि उन्होंने राजीव गांधी को उन संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी थी जिनका उन्हें पद छोड़ने के बाद भी सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका का भी उदाहरण दिया था पूर्व राष्ट्रपतियों के परिवारों को सुरक्षा प्रदान की जाती है। टीएन शेषन अपनी किताब में लिखते हैं, मैंने तर्क दिया था कि चुनाव हारने या किसी अन्य कारण से पद छोड़ने बाद भी उनके परिवार को सुरक्षा की जरूरत पड़ेगी लेकिन राजीव नहीं माने। उन्होंने सोचा कि लोग विश्वास करेंगे कि वह स्वार्थ के लिए ऐसा कर रहा है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए ‘नहीं’ कहा तो यह साफ था कि यह हालिया पीएम को शामिल करने के लिए काफी था। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माने। शेषन की सलाह को अस्वीकार करने के राजीव गांधी के फैसले का बाद में उनपर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि कांग्रेस अक्सर उनकी हत्या के पीछे वीपी सिंह सरकार द्वारा उनकी एसपीजी सुरक्षा वापस लेने को जिम्मेदार ठहराती है। टीएन शेषन ने खुलासा किया कि वीपी सिंह सरकार के कैबिनेट सचिव के तौर पर उन्होंने राजीव गांधी की सुरक्षा बनाए रखने की वकालत की थी, लेकिन सरकार सहमत नहीं हुई। वीपी सिंह के प्रधान मंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने के एक दिन बाद 3 दिसंबर 1989 को टीएन शेषन की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गई थी, जिसमें राजीव गांधी की सुरक्षा जारी रखी जाए या नहीं जैसे मुद्दे पर चर्चा की गई थी। उन्होंने किताब में लिखा कि इस बैठक में शेषन ने तर्क दिया था कि पूर्व पीएम के लिए सुरक्षा खतरा कम नहीं हुआ है।शेषन ने किताब में लिखा, मैंने संकेत दिया था कि कानून को राष्ट्रपति की सहमति के माध्यम से आसानी से संशोधित किया जा सकता है लेकिन वीपी सिंह सरकार इस पर सहमत नहीं हुई। जब तक मैं कैबिनेट सचिव रहा, दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक राजीव की सुरक्षा के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया। मेरे कैबिनेट सचिव पद से हटने के बाद राजीव को दी गई एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई।

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