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Modi 3.0: 2014 में उम्मीद, 2019 में विश्वास और 2024 में गारंटी


कोरोना से लड़ाई हो या विदेशों से रेस्कयू, भारत बड़े भाई की भूमिका में न सिर्फ नजर आया है बल्कि अपनी व्यवहारिकता से इस बात का भान भी दुनिया को कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका या रूस को खुश करने से ज्यादा जरूरी अपने देश और देशवासियों के हित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 10 सालों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वह कद बनाया है जो चीन और पाकिस्तान के हुक्मरान सोच भी नहीं सकते। नरेंद्र मोदी यानि भारत की कूटनीति का वो सिक्का जिसका संसार की चौपालों पर डंका बज रहा है। नरेंद्र मोदी के रूप में दुनिया को एक ग्लोबल लीडर मिला है जिसने वक्त पड़ने पर अन्य देशों के लिए सहयोग का हाथ भी बढ़ाया है। मोदी की गिनती आज अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे नेताओं के साथ होती है। बल्कि अप्रूवल रेटिंग की मानें तो मोदी की पॉपुलैरिटी इन सब से काफी आगे है। पीएम मोदी का इतना बड़ा कद होने की वजह से ही रूस यूक्रेन जंग में भारत एक अलग कूटनीतिक रुख अख्तियार करने में कामयाब हो सका है। अब भारत में चुनाव आखिरी चरण में पहुंच गया है और कुछ ही घंटों में नेताओँ का मुकद्दर ईवीएम के अंदर कैद हो जाएगाा। ऐसे में मोदी 3.0 चर्चा तेज हो चली है। आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का तीसरा कार्यकाल भारत और विश्व के लिए क्यों ज़रूरी है?
दुनिया को मोदी 3.0 से क्या उम्मीद

चुनावों में भाजपा की अनुकूल स्थिति का एक कारण भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती है। 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो भारत दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। आज इसका पांचवां स्थान है। तो अगर चुनाव उम्मीद के मुताबिक हुए तो आर्थिक प्राथमिकताओं के मामले में दुनिया “मोदी 3.0” से क्या उम्मीद कर सकती है? क्या इस राजनीतिक स्थिरता का मतलब नीतिगत अनिश्चितता का अंत होगा? ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन 16 मार्च तक की तैयारी में जुटा हुआ है, जब चुनाव से पहले मतदाताओं को प्रभावित करने वाली नीतिगत घोषणाओं को हतोत्साहित करने के लिए चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू हो गई। 10 मार्च को सरकार ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए और 15 मार्च को भारतीय बाजार को दुनिया की अग्रणी इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों के लिए खोलने के लिए एक नई नीति की घोषणा की। इसने तीन नई सेमीकंडक्टर परियोजनाओं, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस के लिए संशोधित कीमतों और 16 मार्च की समय सीमा से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने के लिए औपचारिक नियमों को भी मंजूरी दी।

भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों में निरंतरता होगी सुनिश्चित

वैश्विक स्तर पर भारत की कूटनीति का लोहा देश-दुनिया अब मानने लगी है। मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल संभवतः ग्लोबल साउथ की आवाज़ों और हितों का प्रतिनिधित्व करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर देगी। वैश्विक मंच पर भारत के हितों और आंकक्षाओँ को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व अपरिहार्य है। चूंकि भारत खुद को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर रहा है। इसलिए उसे क्लीयर विजन, रणनीतिक अंतरदृष्टि और कूटनीतिक कौशल वाले लीडर की जरूरत है। विदेश नीति के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का सक्रिय दृष्टिकोण और सार्थक साझेदारी भारत को अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक स्वीट पोजीशन में रखती है। नरेंद्र मोदी का फिर से चुना जाना भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों में निरंतरता सुनिश्चित करेगा, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक गतिशीलता को आकार देने में एक की प्लेयर के रूप में स्थिति और सशक्त होगी।

हालाँकि यह विशुद्ध रूप से भू-राजनीतिक लक्ष्य प्रतीत हो सकता है, लेकिन इससे जुड़े आर्थिक कारक भी हैं। सरकार सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी करना जारी रखेगी। घर के करीब, प्रशासन दक्षिण एशिया में बढ़ती कनेक्टिविटी, वाणिज्य और अन्य संपर्कों को जारी रखने के लिए बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका की सरकारों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने पर ध्यान देगा।

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

आने वाले वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। हालाँकि, प्रशासन को विदेश और घरेलू स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि वह अपनी अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 7 प्रतिशत की दर से बढ़ाना चाहता है। सिर्फ एक उदाहरण के तौर पर, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप अपनी औद्योगिक नीतियों में तेजी ला रहे हैं, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निर्यात को सीमित करके भारत में विनिर्माण विकास को धीमा किया जा सकता है। घरेलू स्तर पर, भले ही मोदी प्रशासन मजबूत जनादेश के साथ सत्ता में लौटता है, नीतिगत अनिश्चितता का समय आएगा। उदाहरण के लिए, कुछ नीति निर्माता व्यापार के प्रति अधिक खुले दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं और अन्य संरक्षणवाद का समर्थन करते हैं। कुछ नीति निर्माता कभी-कभी खुलेपन और संरक्षणवाद के बीच भी बदलाव कर सकते हैं। कुल मिलाकर, अगर चुनाव घोषणापत्र और चल रही नीतिगत चर्चाओं को कोई संकेत माना जाए, तो मोदी 3.0 भारत और दुनिया के लिए एक परिवर्तनकारी साबित हो सकती है।

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