हाथरस कांड के मुख्य आरोपी सूरजपाल जाटव उर्फ भोले बाबा पर अब तक सीधी कार्रवाई नहीं हुर्ह है। इसकी पीछे कहीं दलित वोट नाराज हो जाने की वजह तो नहीं? हाथरस कांड के चार दिन बाद मायावती का भोले बाबा पर तीखा बयान सामने आया। उनके अलावा पक्ष-विपक्ष की किसी भी पार्टी ने इस कथित गुरु सूरजपाल जाटव उर्फ भोले बाबा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की। वजह साफ है-दलित वोट बैंक पर सबकी नजर…इसलिए भोले हैं भोले बाबा।अब वोट बैंक के लिहाज से राजनीतिक पार्टियों के गुणा-भाग पर थोड़ा नजर डालते हैं। सामाजिक न्याय की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी की ग्रामीण आबादी में 30 फीसदी हिस्सा दलित जातियों का है। इन दलित जातियों में 55 फीसदी से ज्यादा जिस एक जाति का संख्या बल है, वो है जाटव। भोले बाबा के ज्यादातर अनुयायी दलित हैं। कोई भी पार्टी उस पर हाथ डालकर इस वोट बैंक को नाराज करने का खतरा मोल लेना नहीं चाहती।यही वजह है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हों या फिर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी इस घटना पर बड़े ही सधे बयान दे रहे हैं। अखिलेश ने पुलिस प्रशासन की ओर से मामले में अब तक हुई गिरफ्तारियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि परंपरागत धार्मिक आयोजनों में पुख्ता इंतजाम की जिम्मेदारी सरकार की है। उनका यह भी कहना है कि अगर भाजपा सरकार कहती है कि इससे उसका कोई लेना-देना नहीं, तो उसे सरकार में रहने का हक नहीं।हाथरस में पीड़ित परिवारों से मिलने राहुल गांधी गए जरूर, पर उन्होंने भी खुद को समुचित इलाज और मुआवजे की मांग तक सीमित रखा। किसी ने समस्या की असल जड़ पर सवाल नहीं उठाया कि घटना के मुख्य सूत्रधार पर कार्रवाई क्यों नहीं? बसपा प्रमुख मायावती ने जरूर भोले बाबा के खिलाफ एक्शन की मांग की है। अलबत्ता सरकार की सख्ती के बाद प्रशासन ने सेवादारों पर शिकंजा जरूर कसा है। हालांकि भोले बाबा के खिलाफ तात्कालिक तौर पर कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य न होने की वजह से बाबा के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई है। राजनीति शास्त्री प्रो. संजय गुप्ता बताते हैं कि भोले बाबा जाटव समेत कई दलित जातियों के लोगों के बीच मसीहा बनकर उभरा है। वह राजनीतिक पार्टियों से अपने अनुयायियों को लेकर सौदेबाजी करने की स्थिति में भी है। जाहिर है कि इसमें मायावती को अपने लिए खतरा महसूस हो रहा है और उन्होंने इस तरह के बाबाओं से दूर रहने का आह्वान किया है।
