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‘हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि हिंदी को हम पर थोपना बंद किया जाए’, नई नीति पर बोले सीएम स्टालिन


इससे पहले 3 मार्च को सीएम स्टालिन ने तर्क दिया था कि अगर उत्तर भारत में छात्रों को दो भाषाएं ठीक से सिखाई गई हैं, तो दक्षिणी छात्रों को तीसरी भाषा सीखने की क्या जरूरत है? एक्स पर एक पोस्ट में स्टालिन ने आलोचकों से सवाल किया कि वे पहले यह क्यों नहीं बताते कि उत्तर भारत में कौन सी तीसरी भाषा पढ़ाई जा रही है।तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मंगलवार को तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों में हिंदी भाषा को कथित तौर पर थोपने को रोकने की मांग दोहराते हुए तर्क दिया कि ये राज्य कभी नहीं चाहते थे कि उत्तरी राज्य उनकी भाषाएं सीखें। सीएम स्टालिन ने आगे बताया कि पिछले कुछ वर्षों में दक्षिणी राज्यों को हिंदी सीखने के लिए ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ की स्थापना की गई, लेकिन देश के उत्तरी हिस्से में उन्हें किसी अन्य भाषा को ‘संरक्षित’ करने के लिए ‘उत्तर भारत तमिल प्रचार सभा’ की स्थापना कभी नहीं की गई।
तमिलनाडु को अकेला छोड़ दें- सीएम स्टालिन
सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए सीएम स्टालिन ने पूछा, ‘दक्षिण भारतीयों को हिंदी सीखने के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना किए हुए एक सदी बीत चुकी है। इन सभी वर्षों में उत्तर भारत में कितनी उत्तर भारत तमिल प्रचार सभाएं स्थापित की गई हैं? सच तो यह है कि हमने कभी यह मांग नहीं की कि उत्तर भारतीयों को उन्हें ‘संरक्षित’ करने के लिए तमिल या कोई अन्य दक्षिण भारतीय भाषा सीखनी चाहिए। हम बस इतना ही चाहते हैं कि हम पर हिंदी थोपना बंद हो। अगर भाजपा शासित राज्य 3 या 30 भाषाएं सिखाना चाहते हैं, तो उन्हें करने दें! तमिलनाडु को अकेला छोड़ दें!’
डिप्टी सीएम ने केंद्र को दी कड़ी चेतावनी
इधर तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने रविवार को केंद्र सरकार की तरफ से राज्य पर हिंदी थोपने के कथित प्रयासों के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने घोषणा की कि तमिलनाडु कभी भी नई शिक्षा नीति (एनईपी) और किसी भी रूप में हिंदी थोपने को स्वीकार नहीं करेगा। उदयनिधि ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि तमिलनाडु एनईपी, परिसीमन और हिंदी थोपने को अस्वीकार करता है। उन्होंने केंद्र सरकार पर एनईपी के माध्यम से हिंदी को थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
त्रि-भाषा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री ने दी सफाई
इस बीच, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के माध्यम से भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के महत्व को दोहराया। उत्तराखंड के हरिद्वार में बोलते हुए शिक्षा मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सभी भारतीय भाषाओं को समान अधिकार हैं और उन्हें समान रूप से पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि एनईपी की त्रि-भाषा नीति हिंदी को एकमात्र भाषा के रूप में नहीं थोपती है, जो तमिलनाडु में कुछ लोगों की तरफ से उठाई गई चिंताओं के विपरीत है। उन्होंने आगे कहा- ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को भारतीय भाषाओं को महत्व देना चाहिए… सभी भारतीय भाषाओं को समान अधिकार हैं, और सभी को एक ही तरह से पढ़ाया जाना चाहिए। यह एनईपी का उद्देश्य है। तमिलनाडु में कुछ लोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। हमने एनईपी में कहीं भी यह नहीं कहा है कि केवल हिंदी पढ़ाई जाएगी’।

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