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उत्तर प्रदेश को फाइलेरिया मुक्त करने की जिम्मेदारी हम सबकी है: डॉ. रमेश सिंह ठाकुर


लखनऊ। राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश सरकार द्वारा 10 फरवरी, 2024 से प्रदेश के फाइलेरिया प्रभावित 17 जनपदों, बलिया, हमीरपुर, जालौन, जौनपुर, शाहजहांपुर, सोनभद्र, पीलीभीत, में दो दवाओं (डी.ई.सी. और एल्बेन्डाजोल) के साथ और अमेठी, आजमगढ़, बाँदा, बाराबंकी, बरेली, लखनऊ, प्रतापगढ़, प्रयागराज, उन्नाव और वाराणसी में तीन दवाओं (डी.ई.सी., एल्बेन्डाजोल और आईवरमेक्टिन) के साथ मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम (आईडीए ) शुरू किया जा रहा है। फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के सम्बन्ध में मीडिया की सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने हेतु चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं यथा विश्व स्वास्थ्य संगठन, पाथ, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल और सीफार के साथ समन्वय स्थापित करते हुए, मीडिया सहयोगियों के साथ आज लखनऊ में मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया। राज्य कार्यक्रम अधिकारी, फाइलेरिया डॉ. रमेश सिंह ठाकुर ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को ये दवाएं नहीं खिलाई जाएगी। डॉ. रमेश ने बताया कि मोर्बिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एम.एम.डी.पी.) यानि रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता की रोकथाम द्वारा लिम्फेडेमा से संक्रमित व्यक्तियों की देखभाल एवं हाइड्रोसील के मरीजो का समुचित इलाज प्रदान किया जा रहा है। जून 2023 के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में लिम्फेडेमा के लगभग 90768 और हाइड्रोसील के 21131 केस चिन्हित किये गए हैं, डॉ. रमेश ने यह भी बताया कि फाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं । रक्तचाप, शुगर, अर्थरायीटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को भी ये दवाएं खानी हैं। सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं और अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के परजीवी मौजूद हैं, जोकि दवा खाने के बाद परजीवियों के मरने के कारण उत्पन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के दौरान किसी लाभार्थी को दवा सेवन के पश्चात किसी प्रकार की कोई कठिनाई प्रतीत होती है तो उससे निपटने के लिए हर ब्लॉक में रैपिड रेस्पोंस टीम तैनात रहेगी। उन्होंने यह भी बताया कि यदि समुदाय के सभी लोग 5 साल तक लगातार साल में केवल 1 बार फाइलेरिया रोधी दवाओ का सेवन करे तो प्रदेश से फाइलेरिया का उन्मूलन संभव है। उन्होंने सूचित किया कि इस अभियान में सभी वर्गों के-लाभार्थियों को फाइलेरिया रोधी दवाईयों की निर्धारित खुराक प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा बूथ एवं घर-घर जाकर अपने सामने मुफ्त खिलाई जाएगी एवं किसी भी स्थिति में दवा का वितरण नहीं किया जायेगा। ये दवाएं खाली पेट नहीं खानी हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ. तनुज शर्मा ने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव रोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसेय हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलुरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में एल्बेंडाजोल भी खिलाई जाती है जो बच्चों में होने वाली कृमि रोग का उपचार करता है जो सीधे तौर पर बच्चों के शारीरिक और बौद्धिक विकास में सहायक होता है। प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के ध्रुव सिंह ने बताया कि एमडीए अभियान के सफल किर्यान्वयन के लिए ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधानों के सहयोग से सोशल नेटवर्किंग से सम्बंधित गतिविधियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसके लिए पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधानों का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसके साथ ही स्कूल, कॉलेज, जेल, पैरा-मिलिट्री फोर्स आदि जगहों पर बूथ लगाकर लोगों को दवाएं खिलाई जा रही हैं, पाथ के प्रतिनिधि डॉ. शोएब अनवर ने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन अभियान में कार्य कर रही सभी संस्थाओं द्वारा, सरकार के साथ समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है, फाइलेरिया से प्रभावित सभी जनपदों में एमडीए और एमएमडीपी गतिविधियों में पाथ द्वारा सरकार को सहयोग दिया जा रहा है, सीफार की रंजना द्विवेदी ने कहा कि इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया की भूमिका बहुत सशक्त है क्योंकि समुदाय में प्रचार-प्रसार के माध्यम से जागरूकता अत्यंत शीघ्रता से फैलती है। इस अवसर पर फाइलेरिया सपोर्ट नेटवर्क के सदस्यों ने भी अपने अनुभव मीडियाकर्मियों से साझा किया। उन्होंने फाइलेरिया से होने वाली परेशानियों को साझा करते हुए कहा कि फाइलेरिया से ग्रसित होने के बाद भी वह आम लोगों को एमडीए में दवा सेवन के विषय में जागरूक करते हैं। उन्होंने बताया कि, सामुदायिक वैठक के जरिए अपनी समस्या का उजागर करते हुए दवा खाने से इंकार करने वालों को फाइलेरिया रोधी दवा सेवन के लिए तैयार कर रहे हैं एवं दवा सेवन को लेकर कई तरह की भ्रांतियों को दूर करने के प्रयास में जुटी है। अंत में, ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के अनुज घोष ने कहा कि मीडिया की भूमिका , सरकार द्वारा चलाये जा रहे, समस्त कार्यक्रम के सफल किर्यान्वयन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने, मीडिया सहयोगियों से अनुरोध किया कि वे आगामी कल से प्रारंभ होने वाले एमडीए अभियान के दौरान, समाचारों और मीडिया कवरेज के माध्यम से लोगों को लिम्फैटिक फाइलेरियासिस से बचाव के लिए दवा खाने के लिए जागरूक करें। इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन, पाथ ,प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल, सीफार, ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि एवं स्थानीय मीडिया सहयोगी भी उपस्थित थे

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