उरई/जलौन । बेतवा नहर विभाग में हुए 34 लाख के घोटाले की जांच अब जिले से नहीं लखनऊ से भी हो रही है। जांच के लिए जिले में दो सदस्यीय टीम भी पहुंच चुकी है। उसने दो दिन में अपनी जांच में कई सबूत इकट्ठा किए। वहीं, जिले की जांच कमेटी ने पांच दिन में कई बिंदुओं पर जांच की। वहीं, इस घोटाले में नहर विभाग के एक बाबू की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे है। अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच में सामंजस्य बैठाने में माहिर बाबू भी जांच की जद में आ सकता है। बेतवा नहर विभाग के प्रखंड द्वितीय में मंगला नाला की सफाई के नाम पर हुए घोटाले की जांच करने नहर विभाग के अधीक्षण अभियंता मोनेश्वर व आशीष जिले में पहुंचे। जो नहर विभाग में तीन दिवसीय जांच के लिए आए हैं। दोनों अधिकारी गुरुवार को जालौन पहुंचे। उनके साथ बेतवा नहर विभाग के अधिशासी अभियंता सीपी सिंह भी मौजूद रहे। जांच कमेटी शुक्रवार को भी जांच करेगी। उसके बाद उच्च अधिकारियों को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। सूत्रों के मिली जानकारी के अनुसार, कमेटी को भी उन स्थानों को दिखाया जा रहा है। जहां पर काम हुआ है। बाकी स्थानों से दूर रखा जा रहा है। लेकिन जांच कई बिंदुओं पर हो रही है। जिसमें हकीकत सामने आ सकती है। घोटाले को अंजाम देने में विभागीय बाबू की कार्यशैली भी जांच के दायरे में है। सूत्रों की मानें तो नहर विभाग के बाबू के जरिए ही ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच तारतम्य बैठाया जाता रहा है। इसे लेकर भी चर्चाएं तेज हो रही हैं। इस मामले में डीएम ने भी 26 मई को जिले की दो सदस्यीय जांच टीम बनाई थी। वह भी अपनी जांच कर रही है। जो दो दिन बाद अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपेगी। नहर विभाग में बेतवा नहर विभाग की ब्रांच मंगला नाला में सफाई के नाम पर खेल किया गया था। नाले की सफाई के लिए कई टुकड़ों में टेंडर हुआ। टेंडर के बाद ठेकेदार से उन स्थानों पर भी काम करा लिया गया। जिन स्थानों पर टेंडर नहीं हुआ था, उन स्थानों को छुड़वा दिया गया। नहर विभाग से बिना काम कराए करीब 34 लाख का बजट निकाल लिया गया था। पड़ताल में यह हकीकत सामने आई थी। जांच की आंच से अधिकारी खुद को बचाने के लिए ठेकेदार पर आरोप लगा रहे थे। वहीं, ठेकेदार ने विभाग के सामने आकर हकीकत बताई और सभी काम के कागज विभाग को सौंपे। इसके साथ ही ठेकेदार से उन कामों को भी जल्दबाजी में कराया जा रहा है ताकि जांच में सब दुरूस्त मिले। सूत्रों की माने तो नहर विभाग का एक बाबू ठेकेदार से लेकर जेई और एई को अपने कंट्रोल में रखता है। उसके इशारे पर ठेकेदारों को टेंडर से लेकर भुगतान किए जाते हैं। ऑफिस में एक बजे के बाद पहुंचने वाला यह बाबू शाम को चार बजे ऑफिस से गायब हो जाता है। नहर विभाग के कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई दिनों तक उनका कोई अता पता नहीं रहता है। एसडीओ, जेई, एई को अधिशासी अभियंता के पास बैठने का मौका नहीं मिलता है। लेकिन बाबू अधिशासी अभियंता के ठीक बगल में बैठता है। जबकि उसकी कुर्सी दूसरे रूम में है।
